लगभग दो दशक पहले 2003 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए रणभूमि तैयार हो चुकी थी। आमना-सामना कांग्रेस और भाजपा के ही बीच होना था। चुनाव के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू थे- एक, कांग्रेस पिछले 10 वर्षों से सत्ता पर काबिज थी और दूसरे, आम धारणा यह थी कि हो न हो दिग्गी राजा (मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह) अपनी करिश्माई जादूगरी से अपनी सत्ता को तो बचा ले जाएंगे। दिग्विजय की इस अद्भुत जादूगरी को तोड़ने के लिए विपक्षी भाजपा ने कमान उमा भारती के हाथों में सौंपी थी। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनकी राघोगढ़ विधानसभा सीट पर उनको चुनौती देने के लिए भाजपा ने अपना दांव विदिशा के सांसद तथा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवराज सिंह चौहान पर खेला। जाहिर है, प्रदेश के पोस्टर बॉय दिग्गी राजा की घेराबंदी का मतलब था कांग्रेस की घेराबंदी।
चुनाव परिणाम आए। राघोगढ़ में राजा की जीत हुई, शिवराज हारे, मगर भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं और शिवराज दिल्ली लौट गए। आठ महीने बाद उमा भारती को आपराधिक मामले के तहत पद त्यागना पड़ा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बाबूलाल गौर और ने उसके बाद शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी।
उस वक्त भाजपा में चल रही उठापटक से उसके कार्यकर्ता अचंभित थे। कांग्रेस, भाजपा पर हमलावर हो चुकी थी। मुख्यमंत्री बनते ही शिवराज ने अपनी सरकार के दरवाजे सभी धर्म, जाति और समाज के हर वर्ग के लिए खोल दिए। पहले ही बजट (2006-07) में चौहान महिलाओं और बेटियों के लिए कई योजनाएं ले आए। 2006 में प्रारंभ की गई कन्या विवाह योजना और 2007 में लागू की गई लाड़ली लक्ष्मी योजना और विभिन्न वर्गों के लिए की गई पंचायतों ने उन्हें आमजन का मुख्यमंत्री बना दिया। उनकी पहचान पांव-पांव वाले भैया से मामा में तब्दील हो गई।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin June 26, 2023 sayısından alınmıştır.
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