"धर्म सबसे बड़ा शोषक और जाति प्रथा सबसे घृणित"
Outlook Hindi|January 22, 2024
इस साल अपने उपन्यास 'मुझे पहचानो' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए कथाकार संजीव से उनके लेखन कर्म, जीवन, मौजूदा समाज और राजनीति की दशा पर हरिमोहन मिश्र ने विस्तृत बातचीत की। उसके अंश:
हरिमोहन मिश्र
"धर्म सबसे बड़ा शोषक और जाति प्रथा सबसे घृणित"

साहित्य अकादमी या कोई भी र रचनाकार से सुशोभित होता है। पुरस्कार देकर अकादमी ने अपना सम्मान बढ़ाया है। फिर भी लगता है कि आपको फांस पर मिलना चाहिए था।

पुरस्कार क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं, सब जानते हैं। फिर भी अच्छा लगा, लोगों ने नोटिस लिया। मिल रहा है, तो इसे एंजॉय किया जाए। देने वालों को सलाम। जो पात्र, सुपात्र हैं, जिन्हें नहीं मिला है, उन सभी लोगों को मिलना चाहिए। उनकी मेधा को सम्मान दिया जाना चाहिए। आप तो मेरे साथ रहे हैं। आप देखते रहे हैं कि मेधा-संपन्न व्यक्ति को क्या-क्या करना पड़ता है। फिर सम्मानित होते हैं, तो यह देखना सुखकर होता है। मैंने पूर्वांचल पर, महेंद्र मिसिर पर एक अदद उपन्यास पूरबी बयार लिखा था। पूरब के जितने व्यक्ति हैं, वे सब उन कारखानों, कोलियरी या इस्पात के कारखानों में मजदूरी के लिए जाते रहे थे। इंडस्ट्री फैलती गई और लोग पहुंचते गए क्योंकि अपने यहां रोजी-रोटी की समस्या तब भी कठिन थी, अब भी है। आगे जो आसार आ रहे हैं, वे अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। इसलिए एक ममत्व (पूर्वांचल के प्रति) अपने आप विकसित होता गया।

मुझे पहचानो किसी खास दृष्टि को ध्यान में रखकर लिखा? कोई खास एजेंडा था मन में?

मुझे पहचानो अभी फिर पढ़ा, तो मुझे बहुत प्रिय लगा। मेरा फेवरेट है। आप एक औरत को, एक व्यक्ति को किस नजरिये से देखते हैं। आपने पढ़ा होगा, तो

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