सड़क और सीमाएं बंद हैं। सड़कों पर मोटी-मोटी कीलें रोप दी गईं। चट्टानी दीवारें खड़ी हैं। कंटीले तार की बाड़बंदी है। गहरे गड्ढे खोद दिए गए हैं। हथियारबंद पुलिस फौज की कतारें खड़ी हैं। किसी दूर देश के आदमी को शायद आक्रांताओं के आक्रमण का अंदेशा हो जाए। लेकिन यह नजारा ‘लोकतंत्र की मां’ भारत-भूमि की राजधानी और उसकी चौहद्दी से लगे इलाकों-प्रदेशों में महज दो वर्षों बाद फिर लौट आया। यहां के लकदक शहरियों, सरकारी बाबुओं से पूछिए तो कहते हैं, किसान आ रहे हैं, कुछ उसी भाव से मानो हमलावर हों। राजधानी दिल्ली तो बाड़बंदियों, धारा 144 और हर नाके पर पुलिसिया कतारों से चाक-चौबंद है। बगल के हरियाणा की खासकर पंजाब से लगने वाली सीमाएं ही सील नहीं की गईं, आला पुलिस और प्रशासनिक अमला मुनादी करता घूमा कि जो किसान दिल्ली कूच में जाएगा, उसकी जमीन, संपत्ति कुर्क कर ली जाएगी, ट्रैक्टर जब्त कर लिए जाएंगे, गाडि़यों का रजिस्ट्रेशन और पासपोर्ट रद्द कर दिए जाएंगे। 13 जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया। किसान नेताओं के सोशल मीडिया खाते बंद कर दिए गए। 13 फरवरी को शंभू बार्डर पर किसानों के जत्थे पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले छोड़े गए। चंडीगढ़ में हरियाणा के एक किसान नेता कहते हैं, “हालात इमरजेंसी से बदतर हैं। हमारे घरों में आधी रात के बाद पुलिस ने दबिश दी और महिलाओं को धमकाया। संसदीय विपक्ष ईडी-सीबीआइ के डर से दुबक गया है तो लड़ाई सड़क पर लड़नी होगी। जनता को ही विपक्ष बनना पड़ेगा।’’
विपक्षी पार्टियों के भरोसे अपने हक की लड़ाई संभव नहीं है, शायद यह एहसास किसानों को 2020 में ही हो गया था, जब केंद्र सरकार कोविड-19 महामारी के दौर में “आपदा में अवसर’’ भांपकर तीन केंद्रीय कृषि कानून ले आई। उसे तकरीबन 13 महीने दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के डेरा डालने और 750 किसानों की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के पहले नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वापस ले लिया था।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin March 04, 2024 sayısından alınmıştır.
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