नरेंद्र मोदी और उनकी प्रचार मंडली ने सरकार या भाजपा की जगह 'मोदी की गारंटी' और 'चार सौ पार' जैसे नारों से अपने समर्थकों को उत्साहित करने की कोशिश की है। नए नारे या जुमले गढ़ने में प्रधानमंत्री मोदी का जवाब नहीं है। पहले भी कई बार ऐसे नारे गढ़े गए थे लेकिन उनके पूरा न होने या चुनाव हारने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कहना पड़ा था कि ये तो उनके कार्यकर्ताओं को उत्साहित और प्रेरित करने के लिए था।
आज यह सवाल सबसे मौजूं है कि भाजपा को चार सौ सीटें आएंगी कहां से। जो कोई राज्यवार हिसाब लगाता है, वह सारी उदारता के बावजूद 272 पार नहीं कर पाता क्योंकि उत्तर और पश्चिम के राज्यों में भाजपा ने पिछली बार लगभग सारी सीटें जीती थीं और दक्षिण तथा पूरब में बहुत कम। इस बार दक्षिण और पूरब में भी सीटें बढ़ने की जगह घटती या कड़ी चुनौती में उलझी लग रही हैं और उत्तर तथा पश्चिम में भी। वहां भाजपा के लिए सीटें बढ़ाने की गुंजाइश तो नहीं ही बची है। भाजपा को अपने सौ से ज्यादा सांसदों का टिकट काटना पड़ा है और जगह-जगह बगावत है। कई मंत्री बेटिकट रह गए हैं। दर्जन भर मुद्दों की रस्साकशी के बाद मोदी खुद मुद्दा बन गए हैं, सारा चुनाव उन्होंने अपने ऊपर ओढ़ लिया है। भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में नरेंद्र मोदी का जिक्र सबसे ज्यादा 65 बार आया है।
काफी लंबे अनिश्चय के बाद अचानक 'इंडिया' गठबंधन जब उभर कर आया, तो मोदी या भाजपा की सारी कवायद उसे बदनाम करने, तोड़ने और एक 'शेर और जाने कितने गीदड़ों' की लड़ाई बताने की रही। जल्दी ही यह समझ आया कि लीडर के दावे और सारे प्रचार के बावजूद विविधता भरे इस देश में गठबंधन के बगैर काम नहीं चलने वाला है, तो लाज-लिहाज छोड़कर जाने किस-किस दल या नेता के साथ गठबंधन किया गया, एनडीए को पुनर्जीवित करने का नाटक किया गया। कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर मजबूत क्षेत्रीय दल के खिलाफ साम-दाम-दंड-भेद अपनाने के बावजूद भाजपा की बात नहीं बनी। इसके बावजूद यही लगता है कि भाजपा के रणनीतिकारों को यह बात समझ नहीं आई है कि नब्बे के दशक के बाद इस देश की राजनीति एकदम बदल गई है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin May 13, 2024 sayısından alınmıştır.
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