
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद की बेदखली के बाद राजधानी दमिश्क पर बागी ताकतों का कब्जा इस क्षेत्र में ऐसे ऐतिहासिक भू-राजनैतिक बदलाव का पड़ाव है, जो जिहादी तत्वों के असर में चले सबसे लंबे गृहयुद्ध को मुकम्मल अंत की ओर ले आया है। विद्रोही बलों ने न सिर्फ असद, बल्कि उस आततायी सत्ता को भी बेदखल कर डाला है जिसे सत्तर के दशक से एक परिवार और एक पार्टी चला रही थी। सीरिया को अकसर अरब की धड़कन कहा जाता है। उसकी रणनीतिक स्थिति ऐसी है, जो अहम भू-राजनैतिक और सांप्रदायिक दरारों से घिरी हुई है। यही बात उसे बाकी अरब देशों से अलग करती है। 2011 में अरब स्प्रिंग नाम से अरब देशों में जनविद्रोह हुए, तब ट्यूनीशिया के बेन अली (1989-2011), मिस्र के हुस्ने मुबारक (1981-11), लीबिया के मुअम्मर गद्दाफी (1969-11) और यमन के अब्दुल्ला सालेह (1978-12) जैसे निरंकुश नेताओं का पतन हो गया था, लेकिन सीरिया में आजादी की मांग को लेकर उठी बगावत के सामने असद अकेले सत्ता में टिके रहे। सीरिया का विपक्ष बहुसंख्यक सुन्नियों के हाथ में था जिनकी हालत असद के राज में कमजोर थी। भय और नफरत के दम पर चलने वाली असद की सत्ता में उन्हें विरोधी माना जाता था।
आजादी के बाद सीरिया का इतिहास असद के परिवार के फौलादी राज का पर्याय रहा है। असद अलावी शिया हैं, जो शियाओं में भी अल्पसंख्यक हैं। ऐतिहासिक रूप से सुन्नी और शिया हमेशा से सीरिया में टकराव की स्थिति में रहे हैं। अलावियों की उत्पत्ति नौवीं सदी में पूरब के पहाड़ी इलाके से मानी जाती है। सदियों तक सीरिया पर सुन्नियों का प्रभुत्व रहा। वे हमेशा से अलावियों से नफरत करते रहे। अलावियों के साथ ऐतिहासिक रूप से भेदभाव बरता गया क्योंकि उन्हें गैर-मुस्लिम माना जाता है। यहां तक कि आज भी कई लोग उन्हें विधर्मी या नसीरिया बुलाते हैं, जिसकी वजह इस पंथ के वे बुनियादी तत्व हैं, जो परंपरागत इस्लाम से उसे अलग करते हैं। इस्लाम में सलाफी पंथ के प्रवर्तक माने जाने वाले दमिश्क के चौदहवीं सदी के विद्वान इब्न-ए-तमैया ने फतवा जारी किया था कि "अलावी यहूदियों, ईसाइयों और मूर्तिपूजा करने वाले भारतीयों से ज्यादा विधर्मी हैं।"
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin January 06, 2025 sayısından alınmıştır.
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