सुधीर सिंह के पिता खजान सिंह सरकारी कर्मचारी थे. क्लर्क की पोस्ट थी. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में कार्यरत रहे. अब सेवानिवृत्त हैं. खजान सिंह ने बैंक बैलेंस ज्यादा नहीं बनाया. बैंक में बस जरूरतभर का पैसा ही रहा मगर अपनी छोटीछोटी बचत से वे बाराबंकी के आसपास गांवदेहातों में थोड़ीथोड़ी खेती की जमीनें खरीदते रहे. जिस समय वे सर्विस में आए थे, बाराबंकी जिला काफी पिछड़ा हुआ था. ज्यादातर इलाके में खेतीबाड़ी होती थी. ज्यादातर किसान गरीब थे.
गांवदेहात में अकसर बेटी की शादीगौने के टाइम पर पैसे के लिए लोग अपनी खेती की जमीन का कोई टुकड़ा या तो बेच देते थे या गिरवी रखवा देते थे. खजान सिंह ने ऐसे लोगों से ही कुछ जमीन खरीद ली थी. धीरेधीरे जमीनों के दाम बढ़ने लगे. समय के साथ जिले का विकास हुआ तो खजान सिंह की खरीदी गई कुछ जमीनें मुख्य सड़क के किनारे आ गईं और उन के रेट आसमान छूने लगे. कुछ जमीन सरकार ने सड़क बनाने के लिए अधिग्रहीत की तो उस के एवज में उन्हें काफी पैसा मिला खजान सिंह उस पैसे को भी जमीन में ही इन्वैस्ट करते रहे.
आज उन के पास 20 बीघा यानी करीब 5 हैक्टेयर जमीन है जिस पर उन का बेटा सुधीर सिंह औषधीय पौधों की खेती कर रहा है. इस से हर साल लाखों रुपए की आमदनी होती है. सुधीर सिंह को हायर एजुकेशन प्राप्त करने के बाद भी कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली, मगर पिता ने जो पैसा जमीनों में निवेश किया वह आज सोना उगल रही हैं. खजान सिंह यदि अपनी छोटीछोटी बचत बैंक में रखते तो घटती ब्याज दरों के चलते इतना बड़ा फायदा उन्हें व उन के परिवार को न मिलता.
पुरानी दिल्ली में रहने वाले अनुज मेहता की छोटी सी गारमैंट फैक्ट्री है. 150 एकड़ के मकान में वे पत्नी व बच्चों के साथ रहते हैं. पत्नी की सलाह पर अनुज ने बचत के पैसे से मकान की छत पर 5 कमरों, टौयलेट, बाथ, किचन और लौबी सहित दूसरी मंजिल बनवा ली. दूसरी मंजिल के कमरे उन्होंने पेइंग गेस्ट की तरह उठा दिए. हर कमरे में 2 तख्त, 2 अलमारी और दोदो कुरसीमेज डाल दीं. आज उन के 5 कमरों में 10 लड़के बतौर पीजी रहते हैं. प्रत्येक से वे 10 हजार रुपए महीना किराया लेते हैं. इस ऐक्सट्रा आमदनी से उन्होंने अपने घर के पास ही 2 छोटे फ्लैट और खरीद लिए हैं. उन को भी पीजी में कन्वर्ट कर दिया है.
Bu hikaye Sarita dergisinin August First 2022 sayısından alınmıştır.
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