35 वर्षीया मनीषा अपने पति के साथ मुंबई के एक पौश इलाके में रहती है. वह कौर्पोरेट में सीनियर पोस्ट पर काम करती है. औफिस पहुंचने के लिए वह रोज अपनी गाड़ी से तकरीबन 22 किलोमीटर तय करती है, जिसे ड्राइवर ही चलाता है. एक दिन ड्राइवर की अनुपस्थिति में जब वह गाड़ी खुद ड्राइव कर औफिस जा रही थी, आधी दूरी के बाद उस की आंखों के आगे अचानक अंधेरा छाने लगा. उस ने गाड़ी को किसी तरह किनारे ले जा कर रोका और पानी निकाल कर अपने चेहरे को धो लिया. इस से उस को कुछ ठीक लगने लगा और वह फिर से ड्राइव कर औफिस पहुंच गई. औफिस पहुंचने पर सहकर्मी से मनीषा ने अपनी बात कही. उन्होंने उसे डाक्टर से जांच करवाने की सलाह दी.
मनीषा भी थोड़ी सोच में पड़ गई और डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने जांच कर सही पोषण के न मिलने की वजह की कमजोरी बताया और कई विटामिंस की गोलियां लेने व खानपान में सुधार करने की सलाह दी. पहले तो मनीषा को यह समझ पाना मुश्किल था कि इतनी कम उम्र में उसे पोषण की कमी हुई कैसे, लेकिन यह भी सही था कि घर और बाहर काम का बोझ उस की जिंदगी में कुछ अधिक था. इस वजह से वह समय पर भोजन नहीं ले पाती थी.
नियमित दिनचर्या है गलत
यह सही है कि आज की भागदौड़ की जिंदगी में समय पर भोजन करना, समय से सोना, 7 या 8 घंटे की नींद पूरी करना आदि किसी सपने जैसा हो चला है. ऐसे में लोग सब से अधिक खानपान को नजरअंदाज करने लगे हैं. इस में महिलाओं की संख्या अधिक है. कुछ महिलाएं तो बगैर सुबह का सही नाश्ता लिए औफिस चली जाती हैं, जबकि कुछ नहाधो कर नाश्ता लेती हैं. ऐसे में सप्लीमैंट्स ही उन की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर पाते हैं.
इस के अलावा कई बार खुद के हिसाब से सही मात्रा में फल, सब्जियां लेने पर भी सप्लीमैंट्स की जरूरत होती है. कुछ लोग इसे पूरा करने के लिए सीधे मैडिकल शौप पर जा कर ऐसे सप्लीमैंट ले लेते हैं, जिन का प्रभाव कई बार गलत हो जाता है. यहां बता रहे हैं कि शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए सप्लीमैंट लेना कितना सही, कितना गलत है.
सप्लीमैंट है जरूरी
Bu hikaye Sarita dergisinin August First 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Sarita dergisinin August First 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
पुराणों में भी है बैड न्यूज
हाल ही में फिल्म 'बैड न्यूज' प्रदर्शित हुई, जो मैडिकल कंडीशन हेटरोपैटरनल सुपरफेकंडेशन पर आधारित थी. इस में एक महिला के एक से अधिक से शारीरिक संबंध दिखाने को हिंदू संस्कृति पर हमला कहते कुछ भगवाधारियों ने फिल्म का विरोध किया पर इस तरह के मामले पौराणिक ग्रंथों में कूटकूट कर भरे हुए हैं.
काम के साथ सेहत भी
काम करने के दौरान लोग अकसर अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते, जिस से हैल्थ इश्यूज पैदा हो जाते हैं. जानिए एक्सपर्ट से क्यों है यह खतरनाक?
प्यार का बंधन टूटने से बचाना सीखें
आप ही सोचिए क्या पेरेंट्स बच्चों से न बनने पर उन से रिश्ता तोड़ लेते हैं? नहीं न? बच्चों से वे अपना रिश्ता कायम रखते हैं न, तो फिर वे अपने वैवाहिक रिश्ते को बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते? बच्चे मातापिता को डाइवोर्स नहीं दे सकते तो पतिपत्नी एकदूसरे के साथ कैसे नहीं निभा सकते, यह सोचने की जरूरत है.
तलाक अदालती फैसले एहसान क्यों हक क्यों नहीं
शादी कर के पछताने वाले हजारोंलाखों लोग मिल जाएंगे, लेकिन तलाक ले कर पछताने वाले न के बराबर मिलेंगे क्योंकि यह एक घुटन भरी व नारकीय जिंदगी से आजादी देता है. लेकिन जब सालोंसाल तलाक के लिए अदालत के चक्कर काटने पड़ें तो दूसरी शादी कर लेने में हिचक क्यों?
शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?
शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.
रेप - राजनीति ज्यादा पीडिता की चिंता कम
देश में रेप के मामले बढ़ रहे हैं. सजा तक कम ही मामले पहुंचते हैं. इन में राजनीति ज्यादा होती है. पीड़िता के साथ कोई नहीं होता.
सिध सिरी जोग लिखी कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
धीरेधीरे मैं भी मौजूदा एडवांस दुनिया का हिस्सा बन गई और उस पुरानी दुनिया से इतनी दूर पहुंच गई कि प्रांशु को लिखवाते समय कितने ही वाक्य बारबार लिखनेमिटाने पड़े पर फिर भी वैसा...
चुनाव परिणाम के बाद इंडिया ब्लौक
16 मई, 2024 को चुनावप्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में दहाड़ने की कोशिश करते हुए कहा था कि 4 जून को इंडी गठबंधन टूट कर बिखर जाएगा और विपक्ष बलि का बकरा खोजेगा, चुनाव के बाद ये लोग गरमी की छुट्टियों पर विदेश चले जाएंगे, यहां सिर्फ हम और देशवासी रह जाएंगे. लेकिन 4 जून के बाद कुछ और हो रहा है.
वक्फ की जमीन पर सरकार की नजर
भाजपा की आंखें वक्फ की संपत्तियों पर गड़ी हैं. इस मामले को उछाल कर जहां वह एक तरफ हिंदू वोटरों को यह दिखाने की कोशिश करेगी कि देखो मुसलमानों के पास देश की कितनी जमीन है, वहीं वक्फ बोर्ड में घुसपैठ कर के वह उसे अपने नियंत्रण में लेने की फिराक में है.
1947 के बाद कानूनों से रेंगतीं सामाजिक बदलाव की हवाएं
15 अगस्त, 1947 को भारत को जो आजादी मिली वह सिर्फ गोरे अंगरेजों के शासन से थी. असल में आम लोगों, खासतौर पर दलितों व ऊंची जातियों की औरतों, को जो स्वतंत्रता मिली जिस के कारण सैकड़ों समाज सुधार हुए वह उस संविधान और उस के अंतर्गत 70 वर्षों में बने कानूनों से मिली जिन का जिक्र कम होता है जबकि वे हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं. नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का सपना इस आजादी का नहीं, बल्कि देश को पौराणिक हिंदू राष्ट्र बनाने का रहा है. लेखों की श्रृंखला में स्पष्ट किया जाएगा कि कैसे इन कानूनों ने कट्टर समाज पर प्रहार किया हालांकि ये समाज सुधार अब धीमे हो गए हैं या कहिए कि रुक से गए हैं.