न्याय में देरी
Sarita|September Second 2022
न्याय लोकतंत्र का अहम आधार है जो तेजी से पंगु होता जा रहा है. न्याय मिलने में देरी से आम आदमी का न्यायिक प्रक्रिया पर से विश्वास उठता जा रहा है और लोग इस व्यवस्था से अब चिढ़ने लगे हैं. आखिर क्यों न्याय आम आदमी से दूर होता जा रहा है?
मिनी सिंह
न्याय में देरी

लाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 4 दशक पहले दायर की गई एक अपील पर फैसला देते हुए सजायाफ्ता राजकुमार को सभी आरोपों से बरी कर दिया. यह अपराध 1981 में किया गया था. सैशन कोर्ट का फैसला 1982 में आया और अपील का निबटारा 2022 में आ कर हुआ. राजकुमार इतने सालों तक जेल में रहे. दोषी वे अकेले नहीं थे बल्कि 3 और लोग थे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

जरा अजीब नहीं लगता कि एक इंसान को सजा दी गई और उस की अपील पर फैसला 40 साल बाद आता है और फिर उसे बरी कर दिया जाता है. लेकिन इतने सालों तक उस की तकलीफभरी जिंदगी का क्या ? कौन लौटाएगा उन के इतने साल ? यह पहला ऐसा मामला नहीं है जिस में न्याय देने में जरूरत से ज्यादा देरी हुई हो.

कुख्यात बेहमई कांड, जिस में फूलनदेवी और उन के साथियों ने 20 से अधिक लोगों को गोलियों से भून दिया था, 40 साल बाद भी न्याय के लिए प्रतीक्षारत है. इस मामले के ज्यादातर अभियुक्त, गवाह और यहां तक कि पीड़ित भी न्याय की प्रतीक्षा करतेकरते गुजर चुके.

ऐसे मामले इतने अधिक हैं कि उन्हें अपवाद भी नहीं कहा जा सकता. वास्तव में जो अपवाद होना चाहिए उसी ने नियम का रूप ले लिया है क्योंकि अधिकतर मामलों में 15-20 साल की देरी होना आम हो गया है. देरी उन मामलों में होती है जिन्हें संगीन माना जाता है.

उन्नाव में गैंगरेप के बाद इंसाफ के लिए दरदर भटक रही पीड़िता को गैंगरेप के ही आरोपी ने कोर्ट जाते वक्त जिंदा जला दिया. आरोपी कुछ दिनों पहले ही जमानत पर रिहा हो कर आया था. ढीले सिस्टम की वजह से एक साल से इंसाफ से लिए भटकती पीड़िता को आखिरकार अपनी जान गंवानी पड़ी. लगातार मिलती धमकियों के बाद भी यूपी की लचर पुलिसिंग व्यवस्था पीड़िता को सुरक्षा नहीं दे पाई और न ही कोर्ट उसे इंसाफ दिला पाया. लेकिन गुनहगारों को जमानत मिल गई, कैसे ? यह सिर्फ यूपी की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश में ऐसा हो रहा है.

देश को झझकोर कर रख देने वाले निर्भया कांड में भी क्या हुआ. 18 दिनों बाद चार्जशीट फाइल करने के बाद इंसाफ मिलने में 7 साल लग गए. यानी 2,566 दिन निर्भया के मातापिता को हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट में 2 साल सिर्फ तारीख मिलने में लग गए थे.

Bu hikaye Sarita dergisinin September Second 2022 sayısından alınmıştır.

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