
दुनियाभर में औरत को हमेशा से पुरुष के अधीन रखा गया है. एक लड़की को उस के बचपन से यह बताया जाता है कि वह कोमल और कमजोर है. अकेली रहे तो असुरक्षित है. अपने बारे में लिया गया उस का फैसला गलत है.
उसे बताया जाता है कि पिता, भाई, पति या बेटे के अधीन रह कर ही वह सुरक्षित है. हमेशा अपने घर के पुरुषों का कहा मानो. उन के आदेशानुसार सारे कार्य करो. उन के साथ ही घर से बाहर जाओ. उन्हें जैसा पसंद है वैसा परिधान पहनो. वे जो खिलाएं वही खाओ. वे जितना कहें उतना पढ़ो. वे जो कहें वही पढ़ो.
धर्म और संस्कारों की दुहाई दे कर लड़कियों को जिंदगीभर दायरे में रखने की कोशिश होती है असलियत यह है कि औरतों के प्रति यह चलन और ऐसा नजरिया दुनियाभर में है.
दुनियाभर में औरत पुरुष के सर्विलांस में रहने को मजबूर है. वह क्या पहने, क्या काम करे, क्या खाए, क्या पढ़े, किस से मिले, क्या बात करे, कितना हंसे, कितना मुंह ढके, कितना तन ढके आदि सब पुरुषों के मनमुताबिक करना होता है. जबकि पुरुषों के लिए ऐसे कोई नियम दुनिया में कहीं भी नहीं हैं.
पुरुष औरत के पैर में पड़ी वह जंजीर है जो उस को खुले आसमान में उड़ने से रोकती है. लेकिन इस जंजीर को तोड़ कर जो औरतें आगे बढ़ीं, आज दुनिया उन के हुनर, काबीलियत और नेतृत्व की कायल है. जिन औरतों ने पुरुषसत्ता को दरकिनार कर अपने जीवन के फैसले खुद लिए, उन के नाम आज चमक रहे हैं. दुनिया का नेतृत्व करने वाली, राजनीति में ऊंचे पदों पर पहुंचने वाली अधिकांश औरतें वे हैं जिन के सिर पर कोई पुरुष अपने आदेशों की चाबुक लिए नहीं खड़ा है, जिन्होंने पुरुषों की मौजूदगी और प्रभाव को स्वीकार नहीं किया.
रेडियोधर्मिता पर गहन शोध करने वाली और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक मैरी क्यूरी से ले कर इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी तक और मदर टेरेसा, सरोजिनी नायडू, अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी, ममता बनर्जी व प्रियंका चोपड़ा जैसी महिलाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने पुरुषसत्ता के दबाव को झटक कर अपने फैसलों और अपनी इच्छा के मुताबिक अपने व्यक्तित्व को गढ़ा.
Bu hikaye Sarita dergisinin November First 2022 sayısından alınmıştır.
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भाभी, न मत कहना
सुवित को अपने सामने देख समीरा के होश उड़ गए. अपने दिल को संभालना मुश्किल हो रहा था उस के लिए. वक्त कैसा खेल खेल रहा था उस के साथ?

शादी से पहले जब न रहे मंगेतर
शादी से पहले यदि किसी लड़की या लड़के की अचानक मृत्यु हो जाए तो परिवार वालों से अधिक ट्रौमा उस के पार्टनर को झेलना पड़ता है, उसे गहरा आघात लगता है. ऐसे में कैसे डील करें.

पति की कमाई पर पत्नी का कितना हक
पति और पत्नी के बीच कमाई व खर्चों को ले कर कलह जब हद से गुजरने लगती है तो नतीजे किसी के हक में अच्छे नहीं निकलते. बात तब ज्यादा बिगड़ती है जब पति अपने घर वालों पर खर्च करने लगता है. ऐसे में क्या पत्नी को उसे रोकना चाहिए?

अमीरों के संरक्षण व संवर्धन की अभिनव योजना
गरीबों के लिए तो सरकार कई योजनाएं बनाती है लेकिन गरीबों का उद्धार करने वाले अमीरों को क्यों वंचित किया जाए उन के लग्जरी जीवन को और बेहतर बनाने से. समानता का अधिकार तो भई सभी वर्गो के लिए होना चाहिए.

अब वक्फ संपत्तियों पर गिद्ध नजर
मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है और उसे किस तरह उस से छीना जाए, मसजिदों पर पंडों पुजारियों को कैसे बिठाया जाए, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है. इस के लिए एक्ट में संशोधन के बहाने भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामेंट्री कमेटी का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए कुछ मुसलिम नेता तो शामिल किए गए लेकिन उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

घर में ही सब से ज्यादा असुरक्षित हैं औरतें
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से बताती है कि महिलाओं के लिए घर ही सब से असुरक्षित स्थान बन चुका है. इस असुरक्षा का समाधान समाज और सरकार की ओर से समग्र दृष्टिकोण अपनाने से ही संभव हो सकता है.

मेहमान बनें बोझ नहीं
घर में मेहमान आते हैं तो चहलपहल बनी रहती है. लेकिन मेहमान अगर मेहमाननवाजी कराने के लिए आएं तो मेजबान के पसीने छूट जाते हैं और उसे चिड़चिड़ाहट होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि मेहमान कुछ एथिक्स का ध्यान रखें.

कहां जाता है दान का पैसा
उज्जैन के महाकाल मंदिर दर्शन घोटाले की एफआईआर अभी दर्ज ही हो रही थी कि नई सनसनी वृंदावन के इस्कौन मंदिर से आई कि वहां भी एक सेवादार करोड़ों का चूना लगा कर भाग गया. ऐसी खबरें हर उस मंदिर से आएदिन आती रहती हैं जहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. जाहिर है, यह भीड़ भगवान को पैसा चढ़ाने ही आती है जिसे मंदिर के सेवादार झटक लें तो हैरानी किस बात की.

मुफ्त में मनोरंजन अफीम की लत या सिनेमा की फजीहत
बौलीवुड की अधिकतर फिल्में बौक्स ऑफिस पर लगातार असफल हो रही हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर विचार करने की जगह यह इंडस्ट्री चुनावी नेताओं की तरह बीचबीच में फ्रीबीज की घोषणा कर देती है. इस से हालात क्या सुधर सकते हैं?

जिंदगी अभी बाकी है
जीवन का सफर हर मोड़ पर नए अनुभव और सीखने का मौका देता है. पार्टनर का साथ नहीं रहा, बढ़ती उम्र है, लेकिन जिंदगी खत्म तो नहीं हुई न. इस दौर में भी हर दिन एक नई उमंग और आनंद से जीने की संभावनाएं हैं.