
इजराइल का उद्भव लगभग उसी दौर में हुआ था जिस दौरान धर्म के नाम पर पाकिस्तान भारत से अलग हुआ. तब से आज तक इजराइल अपने पड़ोसी देशों से बिलकुल उसी तरह लड़ता आ रहा है जैसे पाकिस्तान, खासकर उस देश के प्रति दोनों में ही नफरत का भाव ज्यादा है जिस देश से टूट कर वे पैदा हुए. दोनों ही देशों में कुछ दिन ही शांति के होते हैं। जबकि अधिकांश समय दोनों देशों की सत्ता और सेना लड़ाइयों में व्यस्त रहती हैं और वहां का नागरिक बेचैनी, उग्रता, हिंसा और अपनों के खोने के दुख में डूबा रहता है. रूसयूक्रेन का युद्ध हो, भारतपाकिस्तान का युद्ध हो या इजराइलफिलिस्तीन का, इन के मूल में दूसरे के धर्म के प्रति नफरत और दूसरे की जमीन को हथियाने की साजिश ही निहित है.
गौरतलब है कि हमारी पूरी दुनिया कुल 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन पर बसी है जिस पर दुनियाभर के लगभग 8 अरब इंसान बसते हैं. इस 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन में से सिर्फ 35 एकड़ जमीन का एक ऐसा टुकड़ा है जिस के लिए बरसों से जंग लड़ी जा रही है. जिस जंग में करोड़ों जानें जा चुकी हैं.
इस जंग को समझने के लिए उस 35 एकड़ जमीन की कहानी जानना जरूरी है. येरुशलम में 35 एकड़ जमीन के टुकड़े पर एक ऐसी जगह है जिस का ताल्लुक तीनों धर्मों - यहूदी, ईसाई और इसलाम से है. इस जगह को यहूदी 'टैंपल माउंट' कहते हैं जबकि मुसलिम इसे हरम अल शरीफ के नाम से पुकारते हैं.
ईसाई इस जगह को ईसा मसीह के क्रौस पर चढ़ाए जाने और फिर जी उठने वाली कहानी से जोड़ते हैं. 35 एकड़ जमीन का यह वो टुकड़ा है जिस पर सैकड़ों साल पहले ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था लेकिन वर्ष 1187 में यहां मुसलमानों का कब्जा हुआ और तब से लेकर 1948 तक मुसलमानों का ही कब्जा रहा. लेकिन फिर 1948 में इजराइल का जन्म हुआ और उस के बाद से ही जमीन के इस टुकड़े को ले कर जबतब झगड़ा शुरू हो गया. हालांकि सचाई यह भी है कि इस 35 एकड़ जमीन पर बसे टैंपल माउंट या हरम अल शरीफ न तो इजराइल के कब्जे में है और न ही फिलिस्तीन के, बल्कि यह पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के अधीन है और इस की देखभाल का जिम्मा जौर्डन के पास है. साथ ही, यह भी समझौता हुआ कि मुसलिम यहूदियों को बाहर से उस टैंपल माउंट के दर्शन की इजाजत देंगे हालांकि वे पूजापाठ नहीं करेंगे.
Bu hikaye Sarita dergisinin November First 2023 sayısından alınmıştır.
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अब वक्फ संपत्तियों पर गिद्ध नजर
मुसलिम समाज के पास कितनी वक्फ संपत्ति है और उसे किस तरह उस से छीना जाए, मसजिदों पर पंडों पुजारियों को कैसे बिठाया जाए, इस को ले कर लंबे समय से कवायद जारी है. इस के लिए एक्ट में संशोधन के बहाने भाजपा नेता जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में जौइंट पार्लियामेंट्री कमेटी का गठन किया गया, जिस में दिखाने के लिए कुछ मुसलिम नेता तो शामिल किए गए लेकिन उन के सुझावों या आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

घर में ही सब से ज्यादा असुरक्षित हैं औरतें
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से बताती है कि महिलाओं के लिए घर ही सब से असुरक्षित स्थान बन चुका है. इस असुरक्षा का समाधान समाज और सरकार की ओर से समग्र दृष्टिकोण अपनाने से ही संभव हो सकता है.

मेहमान बनें बोझ नहीं
घर में मेहमान आते हैं तो चहलपहल बनी रहती है. लेकिन मेहमान अगर मेहमाननवाजी कराने के लिए आएं तो मेजबान के पसीने छूट जाते हैं और उसे चिड़चिड़ाहट होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि मेहमान कुछ एथिक्स का ध्यान रखें.

कहां जाता है दान का पैसा
उज्जैन के महाकाल मंदिर दर्शन घोटाले की एफआईआर अभी दर्ज ही हो रही थी कि नई सनसनी वृंदावन के इस्कौन मंदिर से आई कि वहां भी एक सेवादार करोड़ों का चूना लगा कर भाग गया. ऐसी खबरें हर उस मंदिर से आएदिन आती रहती हैं जहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. जाहिर है, यह भीड़ भगवान को पैसा चढ़ाने ही आती है जिसे मंदिर के सेवादार झटक लें तो हैरानी किस बात की.

मुफ्त में मनोरंजन अफीम की लत या सिनेमा की फजीहत
बौलीवुड की अधिकतर फिल्में बौक्स ऑफिस पर लगातार असफल हो रही हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर विचार करने की जगह यह इंडस्ट्री चुनावी नेताओं की तरह बीचबीच में फ्रीबीज की घोषणा कर देती है. इस से हालात क्या सुधर सकते हैं?

जिंदगी अभी बाकी है
जीवन का सफर हर मोड़ पर नए अनुभव और सीखने का मौका देता है. पार्टनर का साथ नहीं रहा, बढ़ती उम्र है, लेकिन जिंदगी खत्म तो नहीं हुई न. इस दौर में भी हर दिन एक नई उमंग और आनंद से जीने की संभावनाएं हैं.