'बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन' कार्यक्रम में लांबा ने कहा कि देश जो भी रास्ता चुने, सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर मानव पूंजी को बेहतर बनाने की जरूरत है, जिससे उद्योगों को उत्पादक श्रमिक मिल सकें।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ 'ब्रेकिंग द मोल्ड रीइमेजिंग इंडियाज इकोनॉमिक फ्यूचर' नामक पुस्तक लिख चुके लांबा इस बात से सहमत नहीं हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से बढ़ रही है। उनका मानना है कि आर्थिक वृद्धि करीब 6 से 6.5 फीसदी है, जो भारत की दीर्घावधि क्षमता भी है।
उन्होंने भारत में आर्थिक तरक्की को लेकर हो रहे प्रचार के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने चेताया, 'मुझे चिंता है कि एक तरह की आत्मसंतुष्टि का माहौल बन रहा है। मुझे दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था 6 या शायद 6.5 फीसदी की दर से बढ़ रही है। यह पर्याप्त नहीं है। अगर हम तथाकथित 'के' आकार की रिकवरी के मसले पर ध्यान नहीं देते हैं तो भी यह टिकाऊ नहीं है।'
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर लांबा ने कहा कि वह कम कौशल वाले विनिर्माण के खिलाफ नहीं हैं, लेकन उस औद्योगिक नीति के खिलाफ हैं, जिसमें सिर्फ इस रणनीति पर ध्यान दिया जा रहा है।
अपनी पुस्तक के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'हम सोच को इस फार्मूलाबद्ध मॉडल से दर ले जाना चाहते हैं कि यह (कम कौशल वाला विनिर्माण) ही एकमात्र रास्ता है। हम नहीं कह रहे कि यह राह नहीं है, लेकिन यह एकमात्र रास्ता नहीं है, जिससे भारत की वृद्धि हो सकती है। विचार यह था कि इस सोच में थोड़ा बदलाव किया जाए।'
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin March 28, 2024 sayısından alınmıştır.
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