आगामी वर्षों में विकसित देशों में वृद्धि में धीमापन आने की आशंका है। ऐसे में भारत की निर्यात रणनीति क्या होनी चाहिए? क्या हमें दक्षिण-पूर्व एशिया पर अधिक ध्यान देना चाहिए? उभरते भू-राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में आप इसे कैसे देखते हैं?
हमें बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सेवा और पर्यटन के क्षेत्र में हम बहुत अच्छा निर्यात हासिल कर सकते हैं लेकिन परियोजना निर्यात एक अन्य क्षेत्र है जिसमें हम अब तक वैसा प्रदर्शन नहीं कर सके हैं, जैसा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मैंने पाया कि ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख मकान की कमी है। यह हमारे रियल एस्टेट डेवलपरों के लिए बहुत बड़ा अवसर है कि वे ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख मकान बना सकें। मैंने वहां के साउथ ऑस्ट्रेलिया राज्य की सरकार से बात की है। मैंने वहां के व्यापार मंत्री से भी बात की है और हम इसे आगे ले जाएंगे। मैंने क्रेडाई से भी बात की है और कहा है कि वे अपने डेवलपरों की टीम तैयार करें जो वहां जाकर ऑस्ट्रेलिया से बातचीत कर सकें। हमें नए क्षेत्रों पर नजर डालनी होगी। पर्यटन में बहुत अधिक संभावनाएं हैं लेकिन विनिर्माण प्रमुख होगा क्योंकि वह रोजगार देता है और एक पूरी व्यवस्था बनाता है। 'मेक इन इंडिया' के 10 साल बाद सरकार को संतुष्टि है कि यह सर्वाधिक सफल कार्यक्रम रहा। धीमी पड़ती दुनिया में भारत लगातार विनिर्माण निर्यात सहित अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
परंतु दक्षिण-पूर्व एशिया और एशिया पर दोबारा ध्यान देने के बारे में क्या हो रहा है?
मैं दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ इस दिशा में काम कर रहा हूं कि क्या हम उनके कुछ गैर शुल्क मुद्दों को हल कर सकते हैं और हम आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते की भी समीक्षा कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि इससे हमें वहां निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलेगा। मैं आसियान देशों के मंत्रियों की बैठक में केवल यह बताने गया था कि यह समीक्षा कितनी जरूरी है और मुझे उनसे आश्वासन भी मिला है। अगर समीक्षा में हमें सही सौदा मिलता है तो इससे हमें व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी। अगर वे ऐसा नहीं करते तो हमें उन गैर टैरिफ बाधाओं को देखना होगा जो हमारे सामने हैं। हमें प्रतिकार के उपायों की और भी देखना होगा।
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin October 02, 2024 sayısından alınmıştır.
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