भारतीय यह मानते आए हैं कि अंतरिक्ष में कोई भी गतिविधि केवल सरकार करती है। परंतु अंतरिक्ष यात्रा को लेकर बेहतरीन वैश्विक ज्ञान में स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों की जबरदस्त हिस्सेदारी है। एक बार जब निजी क्षेत्र गति पकड़ लेता है तो वह गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा और नवाचार लाता है जो सरकारी संस्थानों में नहीं पाया जाता है। परमाणु ऊर्जा पर भी यही बात लागू होती है। अब निजी कंपनियां दुनिया का सबसे सुरक्षित, किफायती और नवोन्मेषी परमाणु रिएक्टर बना रही हैं।
भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के समय यह स्पष्ट था कि बड़े उत्पादन संयंत्र फ्रांस, जापान और अमेरिका से आयात किए जाएंगे और यह बड़ा आरक्षण होगा। हाल के दिनों में गूगल और मेटा ने निजी कंपनियों से 'स्मॉल मॉड्युलर रिएक्टर्स' (एसएमआर) के लिए ऑर्डर दिया है जो 50 मेगावॉट क्षमता वाले संयंत्र होंगे। हम केंद्रीय नियोजक नहीं होना चाहते और न ही हम वे महान नेता बनना चाहते हैं जो भारत के लिए चयन करेंगे। भारत की ऊर्जा नीति को ऐसे हालात बनाने चाहिए जहां निजी कंपनियां इस बात पर विचार करें कि क्या उनके लिए ऐसे उपकरण खरीदना उचित होगा? यह कैसे हासिल किया जा सकता है? नीतिगत माहौल के कौन से तत्व जरूरी हैं ताकि यह क्षेत्र विवेकपूर्ण तरीके से विकसित हो सके? यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसने बाजार की विफलता देखी है। सार्वजनिक अर्थशास्त्र के उपायों को अपनाया जाना चाहिए। यानी बाजार की नाकामी को समझना और भारतीय हालात तथा राज्य क्षमता के अधीन उपयुक्त नीतिगत राह तैयार करना। इसके अलावा उन प्रतिबंधों को हटाने की जरूरत है जिनका बाजार की विफलता से कोई संबंध नहीं। नीति निर्माताओं की कार्य योजना पांच तत्वों में निहित है।
1. अगर देश में कोई व्यक्ति किसी विदेशी विक्रेता से परमाणु रिएक्टर खरीदना चाहता है तो उस पर कोई आयात प्रतिबंध या ऐसा सीमा शुल्क नहीं लगेगा जो लेनदेन में हस्तक्षेप करता हो। बशर्ते कि ऑपरेटर पर सुरक्षा प्रतिबंध लागू हों।
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin November 13, 2024 sayısından alınmıştır.
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