फरवरी 2007 में रेलवे बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन जेपी बत्रा उस वक्त के रेल मंत्री लालू प्रसाद के पास हाई-स्पीड ट्रेन का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। जयप्रकाश नारायण से प्रेरित लालू प्रसाद ने उनसे दो टूक कह दिया कि उनके सिद्धांत कभी ऐसी प्रीमियम ट्रेन चलाने की अनुमति नहीं देंगे, जिसमें सिर्फ पूंजीपति ही चल सकें।
बत्रा को इससे पहले लक्जरी पर्यटन ट्रेन डेक्कन ओडिसी का श्रेय मिल चुका था और वह इस परियोजना के प्रति इतने उत्साहित थे कि उन्होंने रेलमंत्री को नजरअंदाज करते हुए सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इसकी अनुमति ले ली। उसके बाद बत्रा और वित्त आयुक्त आर शिवदासन ने लालू प्रसाद को बगैर बताए ही गुजरात सहित अन्य राज्यों का दौरा किया।
रेलवे बोर्ड ने कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड की तर्ज पर ही इस परियोजना के लिए रकम जुटाने के प्रस्ताव पर भी विचार किया। यह देश का पहला हवाई अड्डा है, जो सार्वजनिकनिजी भागीदारी के तहत संचालित है और इसमें 19 हजार निवेशक शामिल हैं, जिनमें अधिकतर अनिवासी भारतीय हैं। उस वक्त अहमदाबाद-मुंबई मार्ग की अनुमानित लागत 25 हजार करोड़ रुपये थी।
शिवदासन और उनके साथियों ने गुजरात दौरे को इस परियोजना के लिए काफी महत्त्वपूर्ण मोड़ बताया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने न केवल बगैर शर्त सहायता का वादा किया बल्कि कुछ ही घंटों के भीतर गुजरात में परियोजना के व्यवहार्यता अध्ययन के लिए 10 करोड़ रुपये की भी मंजूरी दे दी। रेलवे के दिग्गजों का कहना है कि उसके बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साल 2014 में बुलेट ट्रेन परियोजना के बीज बो दिए थे।
साल 2007 में जब बत्रा रेलवे बोर्ड से सेवानिवृत्त हो गए उसके बाद परियोजना पटरी से हट गई। हालांकि, इसके दो साल बाद लालू प्रसाद ने जापान के टोक्यो से क्योटो तक की यात्रा बुलेट ट्रेन से की।
जापान कर रहा मदद
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin November 21, 2024 sayısından alınmıştır.
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