वेद शास्त्रों, पुराणों और ग्रंथों का अध्ययन किए बिना सत्संग के नाम पर सनातन आस्था का दोहन करने के लिए स्वयंभू संतों की संख्या बढ़ती जा रही है। संत रामपाल रहे हों, बाबा गुरमीत राम रहीम हों, संत आशाराम हों, नित्यानंद स्वामी हों, स्वामी परमानंद हों या नारायण साकार हरि भोले बाबा हों, सबने सत्संग के नाम पर कम पढ़े-लिखे भोले-भाले लोगों को गुमराह करने का काम किया है। इसमें उनके अनुयायियों का कितना भला हुआ यह तो नहीं पता, लेकिन इन बाबाओं ने अरबों की बेनामी और अकूत संपत्ति जरूर जमा कर ली है। इनके कार्यक्रमों में जुटने वाली भारी भीड़ को देखकर वोट के लालची दल और उनके नेता भी इनके जी हुजूरी में दंडवत होते रहते हैं, इसीलिए राम रहीम जैसे सजायाफ्ता अपराधियों को पेरोल पर पेरोल मिलता रहा है।
Bu hikaye Dainik Bhaskar Mumbai dergisinin July 04, 2024 sayısından alınmıştır.
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