जम्मू कश्मीर और लद्दाख की खूबसूरत और शांत वादियां, बर्फ से ढके पहाड़, पीढ़ियों से कवियों, कलाकारों और भारतीय के दिल को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं। यह एक ऐसा अद्भुत क्षेत्र है, जो हर दृष्टि से अभूतपूर्व है, जहां हिमालय आकाश को स्पर्श करता हुआ नजर आता है, जहां इसकी झीलों एवं नदियों का निर्मल जल स्वर्ग का दर्पण प्रतीत होता है, लेकिन पिछले कई दशकों से जम्मू-कश्मीर के अनेक स्थानों पर ऐसी हिंसा और अस्थिरता देखी गई, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। वहां के हालात कुछ ऐसे थे, जिससे जम्मू-कश्मीर के परिश्रमी, प्रकृति प्रेमी और स्नेह से भरे लोगों को कभी भी रू-ब-रू नहीं। होना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्यवश, सदियों तक उपनिवेश बने रहने, विशेषकर आर्थिक और मानसिक रूप से पराधीन रहने के कारण, तब का समाज एक प्रकार से भ्रमित हो गया। अत्यंत बुनियादी विषयों स्पष्ट नजरिया अपनाने के बजाय दुविधा की स्थिति बनी रही, जिससे और ज्यादा भ्रम उत्पन्न हुआ। अफसोस की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर को इस तरह की मानसिकता से व्यापक नुकसान हुआ।
देश की आजादी के समय तब के राजनीतिक नेतृत्व के पास राष्ट्रीय एकता के लिए एक नई शुरुआत करने का विकल्प था, लेकिन तब इसके बजाय उसी भ्रमित समाज का दृष्टिकोण जारी रखने का निर्णय लिया गया, भले ही इस वजह से दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करनी पड़ी।
मुझे अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही जम्मू-कश्मीर आंदोलन से जुड़े रहने का अवसर मिला है। मेरी अवधारणा सदैव ही ऐसी रही है, जिसके अनुसार, जम्मूकश्मीर महज एक राजनीतिक मुद्दा नहीं था, बल्कि यह विषय समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के बारे में था। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल में एक महत्वपूर्ण विभाग मिला हुआ था और वे काफी लंबे समय तक सरकार में बने रह सकते थे। फिर भी, उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर मंत्रिमंडल छोड़ दिया और आगे का कठिन रास्ता चुना, भले ही इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, लेकिन उनके अथक प्रयासों और बलिदान से करोड़ों भारतीय कश्मीर मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़ गए।
कई वर्षों बाद अटल जी ने श्रीनगर में एक सार्वजनिक बैठक में 'इंसानियत', 'जम्हूरियत' और 'कश्मीरियत' का प्रभावशाली संदेश दिया, जो सदैव ही प्रेरणा का महान स्रोत भी रहा है।
Bu hikaye Hindustan Times Hindi dergisinin December 12, 2023 sayısından alınmıştır.
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