आजकल तो राजनीति का यह स्तर हो गया है कि उसे समझने के लिए कोई अधिक बुद्धि की जरूरत नहीं है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने की राजनीति में सभी के कपड़े गंदे दिखाई पड़ते हैं। इसके बावजूद राजनीतिक संदेश देने के लिए अपने चेहरे को दूसरे से चमकदार दिखाने की होड़ लगी रहती है। प्रचार के इस युग में वही नेता, ब्रांड और डायलॉग सफल माने जाते है जिस पर चर्चा हो या जो मोस्ट ट्रेंडिंग में हो। इसलिए राजनीतिक डायलॉग का बहुत अधिक मतलब निकालने का कोई औचित्य नहीं रहता।
राजनीति में विचारधारा, सिद्धांतों के हिसाब से एक दूसरे के कट्टर विरोधी दल कब मिलकर एक साथ सरकार चलाने लगेंगे यह कोई ज्योतिषी भी बताने में शायद सफल नहीं हो सकेगा। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा आज कांग्रेसी युक्त भाजपा के रूप में कई राज्यों में साकार हो रहा है। मध्यप्रदेश तो भाजपा के कांग्रेसीकरण का सक्सेसफुल मॉडल बन गया है।
नगरीय निकायों के चुनावों में भाजपा को मिले झटके को पार्टी में पनप रही कांग्रेसी बुराइयों के रूप में देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश का भाजपा संगठन देश में आदर्श के रूप में माना जाता रहा है। भाजपा जब देश में शून्य पर थी तब भी उसका मध्यप्रदेश का संगठन प्रभावशाली ढंग से काम कर रहा था। संगठन के मामले में कांग्रेस की भाजपा से कोई तुलना नहीं की जा सकती थी। कांग्रेस जहां विभिन्न नेताओं और गुटों के समूह के रूप में मानी जाती थी, वहीं बीजेपी कैडर बेस पार्टी थी। बीजेपी में कैडर सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। संगठन के नेताओं की दक्षता इस बात में साबित होती थी कि कैडर की काबिलियत को पहचान कर उन्हें लोकतांत्रिक प्रणाली में अवसर दिया जाता था। कई बार ऐसे किस्से सामने आए हैं जब कार्यकर्ता को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि उसे पार्टी किस पद के लिए मौका दे रही है और अचानक उसे मौका दे दिया जाता है। इस तरह की स्थिति कांग्रेस में नहीं होती। कांग्रेस में तो जमावट और नेताओं की परिक्रमा के बिना कोई पद या महत्व मिलना मुमकिन नहीं हो सकता था।
Bu hikaye Rising Indore dergisinin 03 August 2022 sayısından alınmıştır.
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