सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस GB नरसिम्हा ने हाल ही में एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान अभिभाषक द्वारा बार-बार 'योर लॉर्डशिप' और 'माई लॉर्ड' कहकर संबोधित किए जाने पर नाराजगी जताई। सुनवाई के दौरान एक वकील से कहा, आप कितनी बार 'माई लॉर्ड्स' कहेंगे? यदि आप यह कहना बंद कर देंगे तो मैं आपको अपना आधा वेतन दे दूंगा। सुप्रीम कोर्ट ने वकील से कहां की आप इसके बजाय 'सर' का उपयोग क्यों नहीं करते? हालांकि कई न्यायाधीशों ने औपनिवेशिक मूल के इन शब्दों के उपयोग की प्रथा को खुले तौर पर हतोत्साहित किया है, लेकिन वकील आदतन इन शब्दों का उपयोग करना जारी रखते हैं। हालांकि वर्ष 2006 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रस्ताव पारित कर ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि यह औपनिवेशिक अतीत का अवशेष है। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस के. चंद्र ने 2009 में वकीलों से 'माई लॉर्ड' का इस्तेमाल करने से परहेज करने को कहा था। उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस मुरलीधर ने वकीलों से औपचारिक रूप से अनुरोध किया था कि वे उन्हें 'योर लॉर्डशिप' या 'माई लॉर्ड' कहकर संबोधित करने से बचें।" कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, थोट्टाथिल बी. नायर राधाकृष्णन रजिस्ट्री के सदस्यों सहित जिला न्यायपालिका के अधिकारियों को एक पत्र भी संबोधित किया, जिसमें उन्होंने माई लॉर्ड या लॉर्डशिप के बजाय सर के रूप में संबोधित किए जाने की इच्छा व्यक्त की थी। राजस्थान हईकोर्ट ने 2019 में एक नोटिस जारी कर वकीलों और न्यायाधीशों के सामने पेश होने वाले लोगों से अनुरोध किया कि वे माननीय न्यायाधीशों को माई लॉर्ड और योर लॉर्डशिप कहकर संबोधित करने से बचें। यह नोटिस 14 जुलाई को हुई बैठक में पूर्ण न्यायालय द्वारा लिए गए सर्वसम्मत प्रस्ताव के बाद जारी किया गया था। ऐसा कदम भारत के संविधान में निहित समानता के आदेश का सम्मान करने के लिए उठाया गया था।
Bu hikaye Rising Indore dergisinin 08 November 2023 sayısından alınmıştır.
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