राहुल गांधी जब लगातार असफल हो रहे थे तो मीडिया, राजनीतिक विश्लेषक, माननीय एंड कंपनी, खुद कांग्रेस के नेता तो ठीक है, हाउस वाइफ्स, सब्जी वाले, अखबार वाले सब ये बताने लगे थे कि राहुल ने कहां गलती की, उसे क्या करना चाहिए। इससे आगे यहां तक कि राहुल गांधी को राजनीति छोड़ देनी चाहिए।
मैं हमेशा असफल लोगों को बहुत गौर से देखती हूं। राहुल गांधी के 'दी राहुल गांधी' बनने की प्रया बहुत तकलीफदेह और दर्दनाक रही है। मैंने इसे महसूस किया है, क्योंकि मैंने असफलताओं को बहुत शिद्दत से महसूस किया है। मैंने जाना है कि असफलता आपके व्यक्तित्व को कहां से और कैसे क्षरित करती हैं।
राहुल के नेतृत्व में हारती कांग्रेस ने राहुल में विश्वास डिगाया था, मगर सोचती कि और वो ऐसा क्या कर सकते हैं जो कांग्रेस को उबार लाए। राजेश तब हमेशा एक बात कहा करते थे कि हमें कोशिशें नहीं छोड़नी चाहिए। सफलता अपने वक्त का इंतजार करती है। कोशिश छोड़कर हम उसके आने का रास्ते बंद कर देंते हैं।
कुछ दिन पहले मैं राजू परुलकर का एक इंटरव्यू सुन रही थी। उसमें वे बता रहे थे कि कैसे 2011 के भट्टा परसौल मामले के बाद विपक्षियों को राहुल गांधी खतरा लगने लगे थे। वे बता रहे थे कि उस मामले के बाद राहुल की कोशिशों से भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया गया, तो कॉर्पोरेट को लगा कि राहल गांधी खतरनाक हैं।
उसी वक्त कॉर्पोरेट ने राहुल गांधी की छवि खराब करने के लिए फंडिंग करना शुरू कर दी। ये वो दौर था, जब विनोद राय कांग्रेस की सरकार को बदनाम करने की अपनी कोशिशों में जी-जान से लगे हुए थे। इस सबके बीच राहुल को पप्पू सिद्ध करना बहुत आसान था।
मैंने ऐसे-ऐसे पढ़े लिखों को राहुल को पप्पू कहते और मानते सुना है कि मेरा पढ़ाई-लिखाई से विश्वास ही उठ गया। उसके बाद राहुल गांधी और गांधी परिवार के लिए बेहद मुश्किल वक्त शुरू हुआ था। मैं कई बार सोचती थी कि ये लोग इस नामुराद देश को छोड़कर चले क्यों नहीं जाते? ये देश इन्हें कुछ नहीं देगा।
Bu hikaye Rising Indore dergisinin 12 June 2024 sayısından alınmıştır.
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