हमारे पूर्वज या पारिवारिक सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें ‘पितृ’ कहते हैं। पितृ हमारे और ईश्वर के बीच की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इनकी क्षमता एवं ताकत ईश्वरीय शक्ति जैसी होती है। पितृ मानव और ईश्वर के बीच एक योनि है, जिसमें मरणोपरान्त मनुष्य की आत्मा कुछ समय के लिए निवास करती है।
‘पितृ’ का अर्थ है 'पिता', किन्तु ‘पितृ’ शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है : प्रथम व्यक्ति के आगे के तीन मृत पूर्वज अथवा मानव जाति के प्रारम्भ या प्राचीन पूर्वज, जो एक पृथक् लोक के अधिवासी के रूप में कल्पित हैं। दूसरे अर्थ के लिए ऋग्वेद में उल्लेख है कि पितृगण निम्न, मध्यम एवं उच्च तीन श्रेणियों में व्यक्त हुए हैं। वे प्राचीन एवं पाश्चात्यकालीन कहे गए हैं।
पितृगण अग्नि को ज्ञात हैं। यद्यपि सभी पितृगण अपने वंशजों को ज्ञात नहीं होते हैं। पितृ अधिकतर देवों, विशेषतः यम के साथ आनन्द मनाते हुए व्यक्त किये गए हैं। वे सोमप्रेमी होते हैं, वे कुश पर बैठते हैं, वे अग्नि एवं इन्द्र के साथ आहुतियाँ लेने आते हैं और अग्नि उनके पास आहुतियाँ ले जाती हैं। जल जाने के उपरान्त मृतात्मा को अग्नि पितरों के पास ले जाती है।
पितृदोष की उत्पत्ति का कारण
हमारे पूर्वज, पितृ जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति एवं असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता। ऐसे में वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन अथवा उपाय करें, जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके।
उनकी भटकती हुई आत्मा को सन्तानों से अनेक आशाएँ होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशीर्वाद देते हैं। यदि पितृ असंतुष्ट रहें, तो सन्तान की कुण्डली दूषित हो जाती है, जिसके कारण अनेक प्रकार के कष्ट एवं परेशानियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप कष्ट तथा दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। हमारे जीवन में कई समस्याएँ मूलभूत आध्यात्मिक कारणों से होती हैं। उन कारणों में से एक है, मृत पूर्वजों की अतृप्ति। वंशजों को होने वाला कष्ट, जिसे ‘पितृ दोष’ कहते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही 'पितृ दोष' है।
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin September 2022 sayısından alınmıştır.
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एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।