दस महाविद्या शाबर साधना पापों का नाश कर, संकटों से बेड़ा पार कराने वाली साधना है। इसे नवरात्र में भी कर सकते हैं अथवा होली पर या ग्रहणकाल में भी कर सकते हैं।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः आत्मव रिपुरात्मनः ।
आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी कृतस्याप्यकृतस्य च ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व 6 /27 )
अर्थात् प्रत्येक मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु होता है तथा स्वयं ही अपने कर्मअकर्म, पाप-पुण्य का साक्षी होता है। यानि यदि कोई आपसे शत्रुता कर रहा है अथवा आपका बैरी बना हुआ है अथवा आपके अपने सगे ही धोखा दे रहे हैं, तो इन सबका कारण वे नहीं आप ही हैं, क्योंकि बिना कारण इस पृथ्वीलोक पर कुछ घटित नहीं होता। इस शत्रुता - मित्रता का भी कारण है, जो आपके कर्मों द्वारा निर्मित हुआ है, भले ही वे पिछले जन्मों के कारण क्यों न घटित हो रहा है, अत: अपने कर्मों को निर्मल करते रहने की कोशिश मनुष्य को सदैव करते रहना चाहिए, क्योंकि आपके कर्म ही कारण को जन्म देते हैं और वही कर्म ही उस कारण को नष्ट करने में सक्षम होते हैं।
दस महाविद्या की शाबर साधना सरल है और शीघ्र फलित होने वाली कही गई है। इसके लिए जातक को एक आसन की जरूरत होती है। आसन पर बैठकर सामने माँ के दस रूपों के चित्र को स्थापित कर लें और घी का दीपक प्रज्वलित कर लें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और तत्त्वशुद्धि के लिए चार बार आचमन करें और निम्नलिखित मन्त्र को बोलें :
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
अब श्री गणेश भगवान् का ध्यान करें और निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें :
ॐ ऋद्धि-सिद्धि-सहिताय गं गणपतये नमः ।
अब निम्नलिखित शापोद्धार मन्त्र की एक माला का जप करें :
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यैशापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।
अब उत्कीलन मन्त्र की एक माला का जप करें :
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin March 2023 sayısından alınmıştır.
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
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प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
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राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।