कुछ धार्मिक पर्व हैं, जो देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं तथा कुछ लोक पर्व हैं, जो कि किसी ऐतिहासिक घटना के आधार पर लोकमानस ने प्रारम्भ किए थे। इन सबसे हटकर कुछ ऐसे पर्व भी हैं, जो मानव जीवन और मानव चिन्तन को एक विश्वजनीय, अखण्ड, अनादि और अनन्त सत्ता के साथ जोड़ते हैं। अक्षय तृतीया ऐसे ही पर्वों में से एक है, जिसे ‘पुण्य पर्व' कहा जा सकता है।
हमारे प्रत्येक धार्मिक कार्य के प्रारम्भ में जो संकल्प किया जाता है, उसमें देश और काल के स्मरण के नाम पर वह कार्य करने वाला व्यक्ति अपनेआपको सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक का इतिहास याद करते हुए वर्तमान बिन्दु से जोड़ता है। इसमें वह बतलाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक इतने कल्प, मन्वन्तर इतने और इतने युग बीत गए हैं। सृष्टि का यह कॅलेंडर अरबों वर्षों का है।
यह कॅलेंडर बिन्दु से वर्तमान इस प्रकार फैलता है : वर्तमान में हम कलियुग में बैठे हैं, जो 4 लाख 32 हजार वर्ष का होता है। इससे दोगुना द्वापर युग कहलाता है, जो इससे पूर्व बीत गया। कलियुग से तिगुना त्रेता युग कहलाता है, जो उससे पूर्व बीत गया और चौगुना सत्य युग कहलाता है, जो उससे भी पूर्व बीता था। इस प्रकार 43 लाख 20 हजार वर्ष की 'एक चतुर्युगी' हुई। यह हमारे कॅलेंडर का एक पैमाना है। ऐसी 71 चतुर्युगियों का 'एक मन्वन्तर' होता है और ऐसे 14 मन्वन्तरों का एक कल्प'।
सृष्टि के एक क्रम में ऐसे सात कल्प माने जाते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 4 अरब 32 करोड़ वर्ष के कल्प का सृष्टि क्रम प्रतिदिन हमें याद रखना होता है। इतनी बड़ी काल यात्रा से हमारा मन प्रतिदिन जुड़ा रहता है। वर्तमान में जो कल्प चल रहा है, उसका नाम 'श्वेतवाराह' है, जो मन्वन्तर चल रहा है, उसका नाम 'वैवस्वत ।' इस मन्वन्तर में 27 चतुर्युगियाँ बीत चुकी हैं, 27वीं चल रही है।
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin April-2023 sayısından alınmıştır.
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।