बुन्देली धरा झाँसी नगरी यूँ तो कई महान् बुकमा विभूतियों के नामों से जानी जाती है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की योद्धा वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, प्रसिद्ध उपन्यासकार और साहित्यकार डॉ. वृन्दावन लाल वर्मा। भारतीय इतिहास में इन्हीं महान् लोगों की श्रृंखला में एक और ऐसा नाम है, जिसे आज भी भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द के नाम से जाना जाता है।
विश्व हॉकी में भारतीय पताका फहराने वाले विश्व प्रसिद्ध हॉकी के जादूगर स्व. र ध्यानचन्द का जन्म इलाहाबाद में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। जन्म के कुछ समयोपरान्त ही इनका पूरा परिवार झाँसी में आकर बस गया था। लगभग छह-सात वर्ष की आयु में इन्होंने छड़ी और गेंद से हॉकी की शुरूआत की। ध्यानचन्द के पिता रामेश्वर सिंह झाँसी में फौज में सूबेदार के पद पर तैनात थे। बचपन में ही ध्यानचन्द को हॉकी की ओर आकर्षित होते देख उन्होंने ध्यानचन्द को आगे हॉकी खेलने की प्रेरणा दी।
अपने फौजी पिता की प्रेरणा पाकर ध्यानचन्द ने हॉकी खेल में विशेष रुचि ली और आहिस्ता-आहिस्ता हॉकी खेल में पारंगत हो गए। मजे की बात यह रही कि एक हॉकी मैच के दौरान ध्यानचन्द के खेल से प्रभावित होकर एक अंग्रेज ने इन्हें फौज में भर्ती के लिए प्रेरित किया। फिर ध्यानचन्द सन् 1922 में 41 पंजाब रेजीमेंट में एक सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गए। कालान्तर में 41 पंजाब रेजीमेंट टूटी और वह 21 जाट रेजीमेंट में आ गए।
मेजर ध्यानचन्द की पहली विदेश यात्रा
सन् 1926 में ध्यानचन्द को न्यूजीलैण्ड जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चूँकि ध्यानचन्द की आर्थिक स्थिति अत्यन्त नाजुक थी । विदेश जाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, लेकिन ध्यानचन्द ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया। सेना से मिले हुए पुराने गर्म ओवरकोट और गर्म शर्ट एवं पेन्ट इकट्ठा किए, सेना के ही जूते तथा फलालेन की सस्ती कमीजें बनवायीं और कम्बल बाँधकर विदेशी दौर की तैयारी कर ली। न कोई झिझक, न कोई दिखावा।
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin August 2023 sayısından alınmıştır.
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।