भारत में प्राकृत भाषा में साहित्य की रचना लगभग 600 ईसा पूर्व से 1300-1400 ई. तक हुई है, जिसमें मुख्य रूप से जैन ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है। वहीं, साहित्य, वैद्यिकी, ज्योतिष आदि विषयों पर ग्रन्थों की भी रचना हुई है। जहाँ तक ज्योतिष के ग्रन्थों का प्रश्न है, तो इसमें निमित्त, मुहूर्त, संहिता, होरा, सामुद्रिक शास्त्र इत्यादि से सम्बन्धित ग्रन्थ रचे गए हैं।
यद्यपि इनमें भारतीय ज्योतिष से मूलभूत भिन्नता दिखाई नहीं देती, फिर भी इन अधिकतर ग्रन्थों के रचयिता जैन आचार्य होने के कारण कतिपय आधुनिक विद्वान् इन्हें 'जैन ज्योतिष' नामक भिन्न शाखा में रखते हैं। प्रस्तुत आलेख में ज्योतिष से सम्बन्धित कतिपय प्राकृत भाषायी ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
सूर्यप्रज्ञप्ति
यह प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें सूर्य की गति आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्राकृत भाषा के इस ग्रन्थ पर मलयगिरि सूरि ने संस्कृत टीका लिखी है। इसे वेदांग ज्योतिष के समान प्राचीन ज्योतिष का प्रामाणिक और मौलिक ग्रन्थ माना जाता है।
चन्द्रप्रज्ञप्ति
सूर्यप्रज्ञप्ति की तुलना में यह परिष्कृत ग्रन्थ है। इसमें सूर्य एवं चन्द्रमा की गति से सम्बन्धित सिद्धान्त दिए गए हैं। इसमें राहु-केतु का भी उल्लेख है।
ज्योतिष्करंडक
यह प्राचीन ज्योतिष का ग्रन्थ है, जिसकी रचना तीसरीचौथी शताब्दी ई.पू. की मानी जाती है। इसमें नक्षत्र–लग्न गणना की गई है।
निमित्तशास्त्र
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin February 2024 sayısından alınmıştır.
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एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।