तुलसीकृत रामचरितमानस में हनूमान् भक्ति को समर्पित यदि किसी काण्ड की चर्चा की जाए, तो उसमें सर्वोपरि सुन्दरकाण्ड है। हनूमान् भक्तों को मंगलवार एवं शनिवार सुन्दरकाण्ड का नियमित पाठ करते देखा जा सकता है। वर्तमान समय में हनूमान् जी की उपासना के लिए विशिष्ट उपायों में सुन्दरकाण्ड को ही सर्वोपरि माना जाता है।
किष्किन्धाकाण्ड के अन्तर्गत 'कहई रीछपति सुनु हनुमाना...' से आरम्भ करते से आरम्भ करते हुए सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड में भक्तशिरोमणि हनूमान् जी की अद्भुत लीला प्रसंग का ही बखान हुआ है।
मानस प्रेमियों के मन में यह प्रश्न आरम्भ से ही उठता रहा है कि सम्पूर्ण रामचरितमानस में इस काण्ड को ही सुन्दरकाण्ड क्यों कहा गया है? भगवान् राम का जन्म जिस काण्ड में हुआ है और जिसमें उनकी बाल लीलाओं का सुन्दर वर्णन हुआ है, उसे छोड़कर इस काण्ड को 'सुन्दरकाण्ड' क्यों कहा गया है? प्रथम दृष्ट्या यह आश्चर्यजनक ही प्रतीत होता है।
इस सम्बन्ध में विद्वानों ने अनेक मत दिए हैं, जिनका समुचित वर्णन ही इस रहस्यमय ग्रन्थि को कुछ हद तक खोल पाने में समर्थ होगा।
मानस तत्त्वसुधारणावी व्याख्या में कहा गया है। कि आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण में इस काण्ड में सबसे विलक्षण काव्य शैली अर्थात् जोड़, यमक, छन्द आदि वक्तव्य भावों को सुन्दर रूप से दर्शाया है। इसी कारण वह ‘सुन्दरकाण्ड' कहलाया। उसी प्राचीन शैली को कालान्तर में सभी आचार्यों ने ग्रहण किया और यह सुन्दरकाण्ड बना रहा।
श्री रामदयाल मजूमदार का मत कि सुन्दरकाण्ड नामकरण में कुछ विशिष्टता है। यद्यपि रामायण को 'जनमनोहर' कहा गया है, परन्तु उसके अन्दर सुन्दरकाण्ड तो अत्यन्त मनोहर है। जिस प्रकार महाभारत का विराट् पर्व सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार रामायण में सुन्दरकाण्ड सर्वश्रेष्ठ काण्ड है। सुन्दरकाण्ड में राम सुन्दर हैं, कथाएँ सुन्दर हैं, सीता सुन्दर हैं, सुन्दर में क्या सुन्दर नहीं है?
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin April 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin April 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।