अर्द्धरात्रि के उपरान्त उत्तरी आकाश में ध्रुवतारे के समीप जो सात चमकते हुए तारों का समूह दिखाई देता है, उसे 'सप्तर्षि मण्डल' कहते हैं। सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल का महत्त्व हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं ज्योतिष में समान रूप से है।
पुराणों के अनुसार प्रत्येक कल्प में 14 मनु होते हैं। कल्प भारतीय ज्योतिष एवं हिन्दू धर्मशास्त्र में समय की सबसे बड़ी इकाई है। 1,000 महायुगों से मिलकर एक कल्प बनता है और इसमें 4 अरब 32 करोड़ सौर वर्ष होते हैं। प्रत्येक मनु के काल को 'मन्वन्तर' कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं। वर्तमान कल्प के जो 14 मनु हैं और उनके नाम से जो 14 मन्वन्तर हैं, वे इस प्रकार हैं :
(1) स्वायम्भुव, (2) स्वारोचिष, (3) उत्तमज (औत्तम), (4) तामस, (5) रैवत, (6) चाक्षुष, (7) वैवस्वत, (8) सावर्णि, (9) दक्षसावर्णि, (10) ब्रह्मसावर्णि, (11) धर्मसावर्णि, (12) रुद्रसावर्णि, (13) देवसावर्णि तथा ( 14 ) इन्द्रसावर्णि।
पहले मनु स्वायम्भुव मनु हैं और उनका मन्वन्तर 'स्वायम्भुव मन्वन्तर' कहलाता है। इस मन्वन्तर सप्तर्षियों के नाम इस प्रकार हैं: (1) मरीचि, (2) अत्रि, (3) अंगिरा, (4) पुलस्त्य, (5) पुलह, (6) क्रतु तथा (7) वसिष्ठ।
ये ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और इन्होंने गृहस्थ जीवन या किया था। इनकी पत्नियों में मरीचि की सम्भूति, अत्रि की अनसूया, पुलह की क्षमा, पुलस्त्य की प्रीति, ऋतु की सन्नति, अंगिरा की लज्जा और वसिष्ठ की अरुन्धती हैं। ये लोकमाता कहलाती हैं। वराहमिहिर के अनुसार पूर्व दिशा में मरीचि, उनसे पश्चिम में वसिष्ठ, वसिष्ठ से पश्चिम में अंगिरा, अंगिरा के बाद अत्रि, अत्रि के समीप पुलस्त्य, उनके बाद पुलह और पुलह के बाद ऋतु क्रमश: पूर्व दिशा से होते हैं और इनके मध्य में अरुन्धती वसिष्ठ के समीप हैं-
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin June 2024 sayısından alınmıştır.
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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।