![हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?](https://cdn.magzter.com/1382621400/1717239225/articles/vL5RQQZhC1717489780838/1717490123259.jpg)
विगत कुछ वर्षों से चैत्र पूर्णिमा अथवा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर सोशल मीडिया में यह चर्चा चलने लग जाती है कि हनुमान् जी की जन्मतिथि को 'हनुमान् जयन्ती' कहना उचित नहीं है, वरन् 'हनुमत् जन्मोत्सव' कहा जाना चाहिए।
इसका कारण देते हुए कहा जाता है कि 'जयन्ती' शब्द उन देवों अथवा महापुरुषों के जन्मदिवस के लिए आता है, जिन्होंने पृथ्वी पर जीवन जीया और अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। चूँकि हनुमान् जी चिरंजीवी हैं और इस पृथ्वी पर अभी भी मौजूद हैं, इसलिए उनकी जन्मतिथि को 'जयन्ती' कहना उचित नहीं है। चूँकि जीवित व्यक्ति के जन्मदिन पर 'जन्मोत्सव' किया जाता है, इसलिए हनुमान जी की जन्मतिथि को भी 'जन्मोत्सव' के रूप में मनाना चाहिए।
इस प्रकार के विवाद को गूगल पर सर्च करें, तो अनेक प्रतिष्ठित मीडिया समूह की वेबसाइटों में भी यह 'ज्ञान' बिना किसी सन्दर्भ के मिल जाता है। वस्तुतः इसमें कोई सत्यता नहीं है। यह एक प्रकार से सोशल मीडिया या व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान मात्र ही प्रतीत होता है। इस अन्तर का शास्त्रों में कोई सन्दर्भ नहीं मिलता। आइए, इसकी पड़ताल संस्कृत कोशों, पुराणों एवं धर्मग्रन्थों में करने का प्रयत्न करते हैं।
'जयन्ती' का मूल अर्थ 'जन्मोत्सव' नहीं
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संस्कृत में 'जयन्ती' का मूल अर्थ 'जन्मतिथि' या 'जन्मोत्सव' के रूप में नहीं मिलता। विभिन्न संस्कृत कोशों में 'जयन्ती' शब्द निम्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है-
1. गौरी या दुर्गा का एक रूप : जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। (कालिकापुराण)
2. इन्द्र की पुत्री जयन्ती वृक्षभिद्गौगोर्योरिन्द्रपु त्रीपताकयोः। (मेदिनीकोश)
3. पताका (पूर्वोक्त मेदिनीकोश)
4. वृक्ष विशेष (मेदिनीकोश, शब्दकल्पद्रुम)।
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin June 2024 sayısından alınmıştır.
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
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मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
![हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vL5RQQZhC1717489780838/1717490123259.jpg)
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
![पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nIlnEEMbu1717489473517/1717489776705.jpg)
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
![शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nlnWRtezY1717485878963/1717486133863.jpg)
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
![सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vayhOmmzt1717485129027/1717485421191.jpg)
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
![अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/2yWm_u4W31714474136097/1714474267037.jpg)
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
![सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/vHJD203bs1714473957430/1714474112917.jpg)
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।