सुभाष के पिता भी प्रतिभावान व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके पूर्व बंगाल के राज दरबार में महत्त्वपूर्ण पदों पर रह चुके थे माता भी और कलकत्ता के धनी एवं प्रतिष्ठित दत्त परिवार से ताल्लुक रखती थी। उनकी माता और पिता के वैवाहिक गठबंधन से पहले जानकीनाथ (सुभाष के पिता) का तीक्षण बुद्धि परिक्षण किया गया था। इसके पश्चात ही प्रभाती बोस (सुभाष की माता के) पिता गंगा नारायण दल ने अपनी पुत्री का विवाह किया था। मातृभूमि के प्रति प्रेम और राजनीतिक विचारधारा सुभाष को अपने पिता से ही मिली क्योंकि उनके पिता विभिन्न महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पड़ों पर रहे और असहयोग आंदोलन के समय अपने पदों से इस्तीफा देकर खादी और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे रचनात्मक गतिविधियों में भाग लिया। सुभाष के पिता के हृदय में गरीबों के लिए भी एक विशेष स्थान था और अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपने पुराने नोकरों और आश्रितों के लिए एक विशेष वित्तीय प्रावधान किया था।
पाँच वर्ष की आयु में सुभाष को कटक के एक अंग्रेजी स्कूल में भेजा गया जहाँ पे सात वर्ष तक रहे। यूरोपीय तर्ज पर चलनेवाले इस स्कूल की शिक्षा ने सुभाष को ब्रिटिश दृष्टिकोण से अवगत करावा और अंग्रेजों द्वारा भारतीय छात्रों के साथ किए जानेवाले भेदभाव को जानने में मदद की। परन्तु वहाँ जाकर सुभाष में आत्मविश्वास की भाव का विकसित हुई। इसके बाद उन्होंने भारतीय जीवनशैली और भारतीय संस्कृति प्रचलित एक भारतीय स्कूल में जाना शुरू किया। यहीं पर, उनके जीवन पर पहला बड़ा प्रभाव प्रधानाध्यापक बैनी माथवदास के व्यक्तित्व का पड़ा। अपने आदर्शो, सिद्धान्तों और मानवीय मूल्यों को जीनेवाले महान व्यक्तित्व के रूप सुभाष का जीवन गठित होने लगा।
सुभाष के जीवन में दूसरा बड़ा प्रभाव स्वामी विवेकानन्द के भाषणों और लेखन के रूप में आया १५ वर्ष की आयु तक आते-आते सुभाष ने स्वामी विवेकानन्द्र, रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्यों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों और डायरियों को पढ़ना प्रारम्भ किया और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात किया।
Bu hikaye Kendra Bharati - केन्द्र भारती dergisinin Kendra Bharati - August 2022 Issue sayısından alınmıştır.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष