विश्वबंधुत्व दिवस
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|Kendra Bharati September 2022
स्वामी विवेकानन्द ने वर्ष १८६३ में शिकागो में धर्म संसद में अपने भाषणों और पश्चिमी दुनिया में बाद के भाषणों के साथ, भारत के बारे में तत्कालीन सोच को अकेले ही बदल दिया था।
निवेदिता गिड़े
विश्वबंधुत्व दिवस

उस समय भारत को जादू और सपेरे की भूमि माना जाता था, एक ऐसी भूमि जहाँ बाघ और हाथी सड़क पर घूमते थे, एक ऐसी भूमि जहाँ महिलाएं अपने बच्चों को, मगरमच्छों के खाने के लिए नदी में फेंक देती थीं, एक ऐसी भूमि जो अंधविश्वास और अज्ञानता में डूबी हुई थी। ऐसी भूमि जिसे गोरे व्यक्ति के धर्म द्वारा बचाने की आवश्यकता थी। लेकिन स्वामी विवेकानन्द ने अपने प्रभावशाली सम्बोधनों में महान हिन्दू धर्म की व्याख्या की और साथ ही सीधे हमले किए बिना उनके (पश्चिमी देशों के दर्शन और मत की सीमाओं को दिखाया, भारत के सम्बन्ध में उनकी धारणा बदल दी। समाचार पत्रों ने लिखा, 'हमें ही भारत का धर्म सीखना होगा। कई उनके अनुयायी बन गए और कुछ उनके साथ हिन्दू धर्म अपनाने के लिए भारत आए।

आज, हम देखते हैं कि यह सब वैचारिक युद्ध है। पुराने दिनों में एक देश को अपने स्वहित के लिए भौतिक रूप से देशों को जीतना पड़ता था। तत्पश्चात् देश को भौतिक रूप से जीतने की आवश्यकता नहीं रही, यदि अन्य देशों के बाजारों पर कब्जा किया जाए तो वही स्वहित के लिए पर्याप्त था। आज, एक देश को दूसरे देशों के लोगों के मन को जीतना है ताकि वे लोग उस देश के हित में व्यवहार करें। इस प्रकार, विचारों (नैरेटिवज्) का युद्ध तेज हो गया है। माननीय एकनाथजी ने इस स्थिति का पूर्वाभास किया था, अतः उन्होंने विवेकानन्द केन्द्र की परिकल्पना एक वैचारिक आंदोलन के रूप में की है। इसलिए विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ताओं के लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। सार्वजनिक समारोहों को उद्देश्यपूर्ण ढंग से आयोजित किया जाना चाहिए, ताकि ये समारोह भारतीय विचारधारा को उसकी प्रासंगिकता के अनुसार समाज में स्थापित करने का अवसर बनें। इस प्रकार, समारोहों को यूं ही आयोजित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि हमें अधिक से अधिक व्यक्तियों को आमंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए।

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प्रेमकृष्ण खन्ना
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