गंगा के किनारे बसा राजपुर नाम का एक गाँव था। स्वामी आत्माराम उसी गाँव में रहते थे। वह बादशाह अकबर के दरबार में एक उच्च पद पर कार्य करते थे। उनके पुत्र का नाम तुलसी था। कम आयु में भी उन्होंने छात्रवृत्ति में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था। स्वामी आत्माराम ने तुलसी को बादशाह के दरबार में ले जाकर बादशाह से उसका परिचय करवाया।
आत्माराम ने राजा से कहा, "महामहिम, मैं बूढ़ा हो रहा हूँ। मैं अपने शेष दिन तीर्थयात्रा और विश्राम में बिताना चाहता हूँ।"
बादशाह ने आत्माराम से कहा, "ठीक है। तुम्हारी जैसी इच्छा है वैसा ही करो। मैं तुलसी को आपके पद पर नियुक्त करूंगा।"
तीर्थयात्रा पर जाने से पहले स्वामी आत्माराम ने अपने पुत्र तुलसी का विवाह ममता नाम की एक कुलीन लड़की से किया विवाह पश्चात् तीर्थयात्रा पर जाने से पहले पिता ने तुलसी और ममता से कहा, “बेटा तुलसी, तुम और तुम्हारी पत्नी को अपनी माँ की अच्छी देखभाल करनी चाहिए। बादशाह ने जो पद तुम्हें दिया है उससे तुम अच्छा नाम कमाओ। अब मुझे तीर्थयात्रा पर जाने की अनुमति दो।"
सम्राट के यहाँ नियुक्त होने के बाद तुलसी सम्पन्नता और किसी का नियंत्रण न होने के कारण बुरी आदतों में फंस गया। उसकी माँ की सारी सलाह भी व्यर्थ गई।
माँ ने तुलसी से कहा, “बेटा, बुरी आदतें तुम्हें शोभा नहीं देतीं। यदि तुम्हारे पिता को यह ज्ञात हो जाए तो उन्हें बहुत दुःख होगा। बादशाह ने तुम्हारे पिता पर ने इतना भरोसा रखा है, उस भरोसे के योग्य बनना तुम्हारा कर्तव्य है।"
तुलसी ने माँ से कहा, "मुझे यह नौकरी बिल्कुल पसंद नहीं है। में केवल पिताजी के लिए यह कर रहा हूँ।"
तीर्थयात्री आत्माराम को किसी तरह अपने बेटे की बुरी आदतों का पता चला। इसलिए वे अपनी यात्रा को आधा छोड़कर घर लौट आए। पिता ने तुलसी से कहा, "मैं बादशाह को तुम्हारी समस्या से अवगत कराऊंगा। कुछ समय के लिए तुम और तुम्हारी पत्नी अपने गांव राजपुर में रहो।"
तुलसी ने पिता आत्माराम से कहा, "मेरी भी यही इच्छा है।"
आत्माराम ने दम्पति के आरामदायक जीवन के लिए सारी व्यवस्था की और फिर तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े।
तुलसी अब्ब अपनी पत्नी पर मोहित हो गया और घर में ही रहने लगा। दिन बीत गए।
Bu hikaye Kendra Bharati - केन्द्र भारती dergisinin Kendra Bharati September 2022 sayısından alınmıştır.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
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