राजस्थान का दक्षिणी भूभाग वांगड़ प्रदेश जनजातियों ( आदिवासियों) का गढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले में अनेक जनजातियां निवास करती हैं। जिनमें भील जनजाति का बाहुल्य है।
भील शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ "बाण" यानी तीर होता है और यही तीर भील जनजाति का मुख्य हथियार है।
ये बात आजादी से कुछ ही समय पहले की है। उन दिनों पूरे भारत की तरह राजस्थान भी छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। उन्हीं में से एक रियासत थी “डूंगरपुर”। यहाँ के महारावल यानी राजा लक्ष्मण सिंह थे। महारावल शिक्षा के खिलाफ।
डूंगरपुर रियासत में एक गांव था रास्तापाल। यहाँ आजादी से पहले कोई सरकारी पाठशाला नहीं थी। उन्हीं दिनों देश में सेवासंघ यानी प्रजा मंडल का गठन हुआ था । प्रजा मंडल के कार्यकर्त्ता घर-घर जाकर बच्चों को शिक्षा का महत्त्व बताते और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। यह बात महारावल को रास नहीं आयी।
इधर प्रजा मंडल ने रास्तापाल गांव में भी एक पाठशाला खुलवा दी। यह पाठशाला बच्चों और बड़ों दोनों के लिए थी। रास्तापाल गांव का स्कूल नाना भाई खांट के निर्देशन में चलता था । नानाभाई स्वयं एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। सेंगा भाई रोत इस स्कूल में पढ़ाने का काम करते थे। काली बाई इसी स्कूल में पढ़ा करती थी।
सेंगा भाई बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनमें देशभक्ति के बीज बोने का भी काम करते थे। वे पाठशाला में अंग्रेजों की क्रूरता और सामन्तों के अत्याचारों के किस्से सुनाया करते थे, जिन्हें सुन-सुन कर सभी का खून खौल उठता था । इन स्कूलों में प्रजा मंडल की बैठकें भी हुआ करती थीं।
Bu hikaye Kendra Bharati - केन्द्र भारती dergisinin December 2022 sayısından alınmıştır.
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