पहले मंत्रीपुत्र जम्बुमाली, फिर पांचों महाबली सेनापतियों, राक्षसराज के महायोद्धा पुत्र अक्षय कुमार और अनेक वीर मंत्री पुत्रों सहित बलवान राक्षस सैनिकों के मारे जाने के समाचार से सम्पूर्ण लंका में शोक और भय व्याप्त हो गया है। यज़ांगवली हनुमान के इस अद्भुत पराक्रम और शौर्य को देखकर हर कोई त हो गया है। लंकाधिपति रावण को तो इन घटनाओं पर विश्वास ही नहीं हो पा रहा है। वह अपने पुत्र अक्षय कुमार के निधन से से अत्यन्त दुःखी है, किन्तु प्रत्यक्षतः दुःख को प्रकट भी नहीं कर पा रहा है।
लंका की सेना को हुई इस असम्भावित क्षति से रावण व्यथित और विचलित हो गया। एक वानर के इस दुस्साहस से वह अति क्रोधित होकर बोला- "लगता है उस मायावी वानर से मुझे ही युद्ध करना होगा। वह वानर अब मेरे हाथों से बच नहीं सकता।" यह कहते हुए रावण का सम्पूर्ण शरीर क्रोध के कारण कम्पित होने लगा है। अपनी तलवार उठाकर वह बाहर जाने को तत्पर हो उढ़ता है। तभी अपने पिता को अत्यन्त क्रोध में स्वयं जाने की आतुरता देखकर पुत्र मेघनाथ उठ खड़ा हुआ और बोला- "पिताश्री, मेरे रहते आपको स्वयं जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं अभी जाता हूँ और शीघ्र ही उस तुच्छ वानर को पकड़ कर आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ। आप व्यथित न हो पिताश्री, उस वानर को दण्ड देने के लिए मुझे जाने की आज्ञा दीजिए।"
Bu hikaye Kendra Bharati - केन्द्र भारती dergisinin March 2023 sayısından alınmıştır.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष