हालांकि, स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को अधिकांशतः स्वतंत्रता सेनानी व हिन्दुत्व के पुरोधा के तौर पर जाना जाता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि वे असाधारण समाजसेवी भी थे। अपने विचारों, शब्दों तथा कार्यों के माध्यम से सामाजिक सुधारों के उनके प्रयासों को धार्मिक संकीर्णतावादियों और सरकार की ओर से बड़े विरोधों का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद, अत्यन्त कम संसाधनों से उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे। सावरकर ने समाज सुधार व तार्किकता से जुड़े अपने विचारों को कलमबद्ध भी किया। रत्नागिरि में नजरबंदी के दौरान उन्होंने 'जातुच्छेदक निबंध' (जातिप्रथा उन्मूलन पर निबंध) व 'विज्ञान निष्ठा निबंध' (वैज्ञानिक सोच पर निबंध) लिखे थे। उनके लिखे नाटक 'उः षाप' (श्राप का प्रतिकार) में अस्पृश्यता, महिलाओं के अपहरण, शुद्धि व रूढ़िवादियों के दोगलेपन जैसे विषयों को उठाया गया है। उन्होंने मन्दिर में प्रवेश होने जैसे विशिष्ट अवसरों पर कविताएं भी लिखीं।
आजीवन समाजसेवी
प्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि सावरकर ने समाजसेवा का अभियान निम्न जातियों के प्रति सहानुभूति के लिए नहीं बल्कि हिन्दू सशक्तिकरण के लिए चलाया था । पर उनका यह कथन इस आरोप को सिरे से खारिज करता है, “हमारे ७ करोड़ धर्मावलम्बियों क 'अस्पृश्य' व पशुओं से बदतर कहना न केवल मानवजाति का बल्कि हमारी आत्मा का भी अनादर करना है। इसीलिए मेरा अटूट विश्वास है कि अस्पृश्यता का समूल उन्मूलन होना चाहिए... जब मैं यह कह कर किसी का स्पर्श करने से इनकार करता हूँ कि वह किसी विशेष जाति में पैदा हुआ है, है, परन्तु कुत्तों व बिल्लियों के साथ खेलता हूँ, उस समय मैं मानवता के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध करता हूँ। अस्पृश्यता का उन्मूलन केवल इसलिए जरूरी नहीं कि यह हमारे ऊपर थोपी गई है बल्कि इसलिए भी कि धर्म के किसी भी पक्ष पर विचार करते हुए इसे न्यायसंगत ठहराना असम्भव है। अतः इस प्रथा को धर्म के एक आदेशानुसार समाप्त किया जाना चाहिए।" (१६२७, समग्र सावरकर वांग्मय, सं. एस. आर. दाते, महाराष्ट्र प्रान्तिक हिन्दू सभा, पुणे, १६६३ - १६६५, खंड ३, पृ. ४८३)।
Bu hikaye Kendra Bharati - केन्द्र भारती dergisinin Kendra Bharati - May 2023 sayısından alınmıştır.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष