योग नए दौर का धार्मिक कर्मकांड
Grihshobha - Hindi|August First 2022
धर्म की व्यापकता दिखाने के लिए योग को एक प्रोडक्ट की तरह पेश करने के पीछे की मंशा क्या है, एक बार जानिए जरूर...
भारतभूषण
योग नए दौर का धार्मिक कर्मकांड

गर कोई यह कहे कि योग कोई धार्मिक नहीं है, तो उस की नादानी पर या तो हंसा जा सकता है या फिर बेहिचक यह कहा जा सकता है कि वह नए दौर के पनपते धार्मिक पाखंडों के साजिशकर्ताओं में से एक है. हर साल सरकार अरबों रुपए खर्च कर के देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनवाती है. इसे मोदी सरकार की सफलता के बजाय इस नए नजरिए से देखा जाना मौजूं है कि यह जनता पर गैरजरूरी बोझ है. आखिरकार योग के प्रचारप्रसार और इसे सरकारी स्तर पर मनाने के लिए हमारे योगाचार्यों को अब खूब पैसा मिल रहा है, कुछ सरकार से तो कुछ अंधभक्तों से.

वजह सिर्फ इतनी है कि 'भारत माता की जय' बोलने के टोटके के बाद योग ऐसा धार्मिक कृत्य है जो ऊपरी तौर पर कर्मकांड से मुक्त है यानी एक ऐसा काम है जिस के एवज में आप को पंडों को सीधे कोई भुगतान नहीं करना पड़ता. सरकार बताना यही चाह रही है कि कर्मकांडों से इतर भी हिंदू धर्म है जिसे अब गैर शुद्ध दुकानदार भी बेच कर अपनी रोजीरोटी चला सकते हैं.

योग की आड़ में बिजनैस

Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin August First 2022 sayısından alınmıştır.

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