महिलाओं की गोपनीय जानकारी या अंतरंग तसवीरों के आधार पर उन्हें ब्लैकमेल करना या उन का शारीरिक शोषण करना बहुत ही आम बात हो चुकी है. संचार क्रांति के कारण महिलाओं के आपत्तिजनक फोटो प्राप्त करना या उन के आपत्तिजनक औडियोवीडियो बनाना न सिर्फ बहुत आसान हो गया है बल्कि उन्हें प्रसारित करना भी आसान हो गया है.
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के सामाजिक कार्यविभाग के एक अध्ययन के मुताबिक ब्लैकमेल के 90% मामलों में पीड़ित पक्ष एक महिला होती है. 60% मामलों में महिलाओं के फोटों को बगैर उन की जानकारी के धोखे में बनाया गया होता है.
किसी भी उम्र की महिला या लड़की आज सुरक्षित नहीं है. 20-25 साल की 2 बच्चों की मां पर भी ये वहशी दानव नजरें गढ़ाए रहते हैं. इन्हें पौर्न इंडस्ट्री में मिल्फ (एमआईएलएफ) कह कर वर्गीकृत किया जाता है.
कभी हम रूढ़िवादी हुआ करते थे. महिलाओं के लिए कहा जाता था कि उन्हें अपने घर की चारदीवारी में कैद रहना चाहिए, उन्हें घर की दहलीज नहीं लांघनी चाहिए. फिर सुसंस्कृत हुए तो कहा गया कि स्त्री को मान एवं मर्यादा की दहलीज को नहीं लांघना चाहिए. फिर आधुनिक हुए, जिस से हमारे पतन की शुरुआत हुई.
कमतर आंकना बड़ी भूल
महिलाओं ने सारी बंदिशों को तोड़ते हुए घोषणा की कि वे द्वितीय श्रेणी की नागरिक नहीं हैं. उन्हें वह सब करना है जो एक पुरुष करता है. वे उन के कंधे से कंधा मिला कर चलेंगी.
महिलाओं ने अपने पुरुष मित्रों के साथ पार्टी, डेट या घूमन के लिए बाहर आनाजाना शुरू किया. पुरुषों के साथ बांहों में बांहें डाल बीच पर घूमते हुए, एकदूसरे को चूमते हुए, जाम से जाम टकराते हुए फोटो आज सोशल मीडिया पर आम हो गए हैं.
क्या कभी सोचा है कि इन फोटों को अगर आप के अभिभावकों तक पहुंचा दिया जाए तो उन पर क्या गुजरेगी?
सामान्यतया अच्छे दिनों में हमें इस बात की चिंता नहीं होती है, हमें लगता है कि हमारे अभिभावकों की सोच आधुनिक है, वे बुरा नहीं मानेंगे.
छलावा है सोशल मीडिया
Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin November First 2022 sayısından alınmıştır.
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