विवाह का सुख तभी जब पतिपत्नी स्वतंत्र हों
Grihshobha - Hindi|February First 2024
परंपरागत बेड़ियों को तोड़ना आवश्यक है, जब पतिपत्नी दोनों सूझबूझ से काम लें...
नसीम अंसारी कोचर
विवाह का सुख तभी जब पतिपत्नी स्वतंत्र हों

रिद्धिमा अकसर बीमार रहने लगी है. मनोज के साथ उस की शादी को अभी सिर्फ 5 साल ही हुए हैं, मगर ससुराल में शुरू के 1 साल ठीकठाक रहने ' के बाद वह मुरझाने सी लगी. शादी से पहले रिद्धिमा एक सुंदर, खुशमिजाज और स्वस्थ लड़की थी. अनेक गुणों और कलाओं से भरी हुई लड़की. लेकिन शादी कर के जब वह मनोज के परिवार में आई तो कुछ ही दिनों में उसे वहां गुलामी का एहसास होने लगा. दरअसल, उस की सास बड़ी तुनकमिजाज और गुस्से वाली है.

वह उस के हर काम में नुक्स निकालती है. बातबात पर उसे टोकती है. घर के सारे काम उस से करवाती है और हर काम में तमाम तानेउलाहने देती है कि तेरी मां ने तुझे यह नहीं सिखाया, तेरी मां ने तुझे वह नहीं सिखाया, तेरे घर में ऐसा होता होगा हमारे यहां ऐसा नहीं चलेगा जैसे कटु वचनों से उस का दिल छलनी करती रहती है.

रिद्धिमा बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाती है मगर उस की सास और ननद को उस के हाथ का बना खाना कभी अच्छा नहीं लगा. वह उस में कोई न कोई कमी निकालती ही रहती है. कभी नमक तो कभी मिर्च ज्यादा का राग अलापती है. शुरू में ससुर ने बहू के कामों की दबे सुरों में तारीफ की ने मगर पत्नी की चढ़ी हुई भृकुटि ने उन्हें चुप करा दिया. बाद में तो वे भी रिद्धिमा के कामों में मीनमेख निकालने लगे.

रिद्धिमा का पति मनोज सब देखता है कि उस की पत्नी पर अत्याचार हो रहा है मगर मांबाप और बहन के आगे उस की जबान नहीं खुलती. मनोज के घर में रिद्धिमा खुद को एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझती है और वह भी बिना तनख्वाह की. इस घर में वह अपनी मरजी से कुछ नहीं कर सकती है.

ऐसी सोच क्यों

यहां तक कि अपने कमरे को भी यदि रिद्धिमा अपनी रुचि के अनुसार सजाना चाहे तो उस पर भी उस की सास नाराज हो जाती है और कहती है कि इस घर को मैं ने अपने खूनपसीने की कमाई से बनाया है, इसलिए इस में परिवर्तन की कोशिश भूल कर भी मत करना. मैं ने जो चीज जहां सजाई है वह वहीं रहेगी.

Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin February First 2024 sayısından alınmıştır.

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