"जब देखो तब गप्पें चल रही होती हैं. आखिर इतनी बातें आप लोग लाती कहां से हैं?" बड़े बाबू रंजनजी बड़बड़ा रहे थे, "अरे, औफिस का भी कुछ कामकाज होना चाहिए या नहीं?"
"रंजन बाबू, आप ही बताइए कि औफिस का कौन सा काम हम ने रोका है. अब आप लोग ही पौलिसी बनाते हैं और उस में देरी भी करते हैं तो हम क्या करें," संगीता ने झींकते हुए कहा, "यहां की 8 घंटे की बोरिंग में हम कुछ बातें नहीं करें तो क्या करें? हम लोग कोई कंप्यूटर मशीन नहीं हैं न जो या तो खटरपटर काम करें या चुपचाप बैठे रहें. अब अपनी बातें अपने कलीगों के साथ न करें तो किस के साथ करें?"
"आप को तो हर बात काटना आती है. मगर बातें तो मुझे सुननी पड़ती हैं न."
"कौन सुनाता है आप को जरा हम भी तो सुनें? आप मर्द लोग क्या गौशिपिंग नहीं करते? किस को कैसे प्रमोशन मिली, किस का ट्रांसफर कब और कैसे हुआ, यही तो चर्चा करते रहते हैं आप लोग दुनियाभर की राजनीति का विषय होता है आप लोगों के पास. फिर हम महिलाओं पर ही आरोप क्यों मढ़ते हैं?"
औफिस में खबरी
सुबोध तक यह बात पहुंचनी ही थी सो पहुंच गई. हर औफिस में खबरी भी होते हैं जो निःशुल्क यह काम करते हैं. उस ने बड़े बाबू को बुलाया और तफ्तीश से पूछा कि क्या हुआ?
उस के यह पूछने भर की देर थी कि वे फट पड़े कि जब देखिए बातें ही बातें. अरे, थोड़ी देर ऑफिस में शांति भी तो रहे. यह क्या कि हर समय खुसुरफुसर ही चल रही होती है.
सुबोध ने उन्हें शांतिपूर्वक बैठाया और कहा, "बड़े बाबू, आप को इन महिलाओं के बारे में क्या जानकारी है?"
Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin November First 2024 sayısından alınmıştır.
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