News Times Post Hindi - January 1, 2020
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في هذه القضية
परिवर्तन की सनातन परम्परा के अनुरूप 2019 इतिहास के पन्नों में सिमटते-सिमटते परवर्ती 2020 को अपनी समृद्ध थाती सौंप गया। अगर अपने भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इसमें ढेरों उपलब्धियां, आशाएं और उम्मीदें हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं। गए वर्ष के प्रथमार्द्ध में पाक में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर भारत ने अपनी ताकत का अहसास कराया। इससे जगा विश्वास वर्षभर संयुक्त राष्ट्र से लेकर अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों तक भारत का इकबाल बुलंद करता रहा। राजनीति के क्षितिज पर देखें तो एनडीए-2 मजबूत हस्ताक्षर के साथ सत्ता में लौटा, लेकिन उत्तरार्द्ध आते-आते जीडीपी में निरंतर गिरावट और बेलगाम होते बाजार ने चिंता की लकीरें खींच दीं। फिर भी तीन तलाक को ठिकाने लगाने, अनुच्छेद-370 से मुक्ति दिलाने और विशेष दर्जा समाप्त कर विकास के सुवास के लिए जम्मू-कश्मीर के दरवाजे खोलने में सफल रही एनडीए सरकार को अयोध्या मुद्दे पर भी मनवांछित बढ़त मिली। इन उपलब्धियों को पुख्ता बनाने की जल्दबाजी में नागरिकता कानून में संशोधन किया गया। चूंकि यह बड़ा दांव था सो इसकी प्रतिक्रिया भी गंभीर हुई। यह प्रतिक्रिया नए वर्ष के लिए चुनौती होगी। पूर्ण बहुमत वाली केंद्र व उत्तर प्रदेश की सरकार का दायित्व बनता है कि भय का माहौल खत्म कर लोगों में विश्वास का संचार करे और 2020 को विकास का वर्ष साबित करे।
...जब प्रो. बोस को प्रोफेसर के अयोग्य माना
प्रख्यात भारतीय भौतिकविद् सत्येन्द्र नाथ बोस ने आधुनिक भौतिकी यानी क्वाण्टम भौतिकी को नई दिशा दी थी । इसमें उनके योगदान की बदौलत ही ' बोस आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स ' और ' बोस आइंस्टीन कंडनसेट ' सिद्धांत की बुनियाद पड़ी । उनके जीवन का एक उल्लेखनीय प्रसंग है , जो उनके यूरोप में कई बड़े वैज्ञानिकों के साथ काम करके लौटने के बाद का है । उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया तो पता चला कि वे इस पद की अर्हता पूरी नहीं करते ।
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हिंसा की आग में किसने झोंका यूपी को ?
देशभर में नागरिकता संशोधन कानून का पुरजोर विरोध जारी है । इस दौरान यूपी के कई जिलों में भी जबरदस्त हिंसा और आगजनी हुई । सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में हुई हिंसा को लेकर कहा , ' लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है । संशोधित नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर कांग्रेस , सपा और वाम दलों ने पूरे देश को आग में झोंक दिया है । अराजक तत्वों से सख्ती से निपटा जाएगा । ' हालांकि हिंसा में बाहरी लोगों के शामिल होने की बात भी सामने आ रही है । राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं , ' इन शरारती तत्वों ने धारा 370 , ट्रिपल तलाक , अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जैसी घटनाओं को एक साथ जोड़ा और मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की । '
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एनआरसी और एनपीआर से जुड़े खास पहलू
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन ( एनआरसी ) पर देशभर में मचे घमासान के बीच मोदी सरकार नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर ( एनपीआर ) की ओर कदम बढ़ा रही है । इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 , 941 करोड़ रुपये जारी करने की मंजूरी दे दी है । एनपीआर का उद्देश्य देश के सामान्य निवासियों का व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है । इस डेटा में जनसांख्यिकी के साथ बायोमेट्रिक जानकारी भी होगी । हालांकि सीएए और एनआरसी की तरह गैर बीजेपी शासित राज्य इसका भी विरोध कर रहे हैं और इसमें सबसे आगे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं । ममता बनर्जी ने तो बंगाल में एनपीआर पर जारी काम को भी रोक दिया है । इसके अलावा केरल की लेफ्ट सरकार ने भी एनपीआर से संबंधित सभी कार्यवाही रोकने का आदेश दिया है ।
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अब मंदिर निर्माण में क्यों हो रही देर ?
कोर्ट के फैसले की विधिक बारीकियां और कानूनी दांव - पेच से अनभिज्ञ लोग एक प्रश्न शिद्दत से उठा रहे हैं कि मन्दिर निर्माण में अब किस बात की देरी की जा रही है ? कब तक हमारे आराध्य राम टाट के पंडाल में रहेंगे ? वे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार केन्द्र सरकार की ओर से बनाए जाने वाले ट्रस्ट के गठन को लेकर भी सवाल उठाने लगे हैं । अयोध्या आने वाले राम - भक्तों के बीच भी मन्दिर निर्माण की बातें हो रही हैं । साधु - सन्तों का मानना है कि यहां बनने वाला मन्दिर न केवल ' न्याय ' का प्रतीक होगा , अपितु संसार भर को न्याय , धर्म , सौहार्द व रामराज की प्रेरणा का केंद्र भी होगा ।
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बीते साल चर्चा में रहे थे मुद्दे
यदि किसी तरीके से पिछले साल का मूल्यांकन करना हो तो कैसे किया जाए ? राजनीतिक शुचिता और परिपक्वता के आयाम पर... सामाजिक ताने बाने की विकसित सुदृढ़ता के विचार से... आर्थिक समृद्धता और सामाजिक न्याय के आधार पर... स्त्री समानता व वंचितों के अधिकार की दृष्टि से... जलवायु व पर्यावरण के मानकों पर हमारी उपलब्धियों के दृष्टिकोण से... धर्म व अध्यात्म की नज़र से... स्वास्थ्य , शिक्षा के मानकों पर... सैन्य व रक्षा क्षेत्र के तौर पर ? ऐसे कितने ही मुद्दे यहां लिखे जा सकते हैं और हैं भी । किसी एक आयाम पर हमने सफलता भी हासिल की है , थोड़ा प्रगति भी की है तो कई ऐसे आयाम हैं जहां हम पहले से पिछड़े हैं या जहां के तहां हैं । आइए नजर डालते हैं बीते साल के कुछ प्रमुख मुद्दों पर , जो जो किसी भी तरीके से हमारे समाज या देश को प्रभावित करते हैं ।
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बीते साल में शिक्षा की दशा-दिशा
भारत के मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने भरोसा दिलाया है कि देश की नई शिक्षा नीति आने ही वाली है और उसमें शिक्षा की चुनौतियों के भारत केंद्रित समाधान की व्यवस्था है । प्रकट रूप में शिक्षा नीति का मसौदा भारत में शिक्षा की प्रचलित विसंगतियों का गहन विश्लेषण करने के उपरान्त भ्रष्टाचारमुक्त व्यवस्था की वकालत करता है । इसमें भविष्य की अपेक्षाओं का आकलन कर महत्वपूर्ण सस्तुतियां की गई हैं । यह संतोष का विषय है कि इसमें भाषा और संस्कृति के महत्व को भी केंद्रीय स्थान दिया गया है । हम आशा करते हैं कि नीति से आगे बढ़कर कार्यान्वयन का समयबद्ध कार्यक्रम भी देश को प्राप्त होगा और उपेक्षा के दौर से निकल कर शिक्षा को नई दिशा मिलेगी । देश के निर्माण में शिक्षा की भूमिका को कमतर आंकने की नकारात्मक प्रवृत्ति से उबरना जरूरी है ।
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लोहिया - केजीएमयू ने बनाए कई कीर्तिमान
बीता साल राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए काफी उपलब्धियों भरा रहा । लोहिया अस्पताल के विलय के बाद से ही डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में कई बदलाव हुए हैं । विलय के बाद से ही कई सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है तो कई नई सुविधाएं बढ़ी हैं । केजीएमयू ने भी साल 2019 में कई नए कीर्तिमान स्थापित किए । केजीएमयू के इतिहास में पहला लिवर प्रत्यारोपण मार्च 2019 में हुआ । घुटना प्रत्यारोपण को लेकर भी 2019 में केजीएमयू से बड़ी शुरुआत सामने आई । इसके तहत बताया गया कि अब घुटने का जितना हिस्सा खराब होगा , डॉक्टर सिर्फ उतना ही बदलेंगे ।
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खुशामदीद 2020 , यूपी में खुशहाली लाना
मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का सफर सुशासन के मोर्चे पर खासा कामयाब कहा जा सकता है । साथ ही अपनी पार्टी भाजपा को आगे बढ़ाने में उनकी कार्यशैली सहायक रही है । इसके बावजूद आने वाले समय में उनका सफर चुनौतियों भरा नज़र आता है । इसका कारण यह है कि सरकार के बेहतर कामकाज से जनता की उम्मीदें बढ़ी हुई हैं । लोगों में धारणा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने में कामयाब रहे हैं और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं हैं । इस विश्वास को कायम रखना भी एक चुनौती होगी ।
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पूरी दुनिया में रही सर्वोच्च न्यायालय के - अहम फैसलों की गूंज
साल 2019 सुप्रीम कोर्ट के तमाम ऐतिहासिक फैसलों के लिए भी जाना जाएगा । सर्वोच्च अदालत ने इस साल कई ऐसे फैसले सुनाए , जो इतिहास बन गए । एक तरफ कोर्ट ने दशकों पुराने तथा पूरे देश को आंदोलित करते रहे अयोध्या जमीन विवाद मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मामले का पटाक्षेप किया , तो दूसरी तरफ राफेल डील में भी अहम फैसला सुनाया । कोर्ट का यह फैसला एक तरह से मोदी सरकार के लिए क्लीन चिट जैसा था । कुछ मामले ऐसे भी रहे , जिनसे सियासत की दिशा और दशा भी बदली । इनमें महाराष्ट्र का सियासी मामला प्रमुख रहा , जहां पहले नाटकीय घटनाक्रम में भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस ने सरकार बना ली थी , लेकिन बाद में उन्हें पद त्यागना पड़ा । आइए एक नजर डालते हैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2019 में सुनाए गए कुछ अहम फैसलों पर -
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न्याय में देरी - न्याय से वंचित करने के समान
तमाम ऐसे चर्चित मामले रहे हैं , जिनमें किसी की सुनवाई बहुत देर से शुरू हुई तो किसी में बहुत विलंब से फैसला आया । लगभग 20 हजार लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार भोपाल गैसकांड के मुकदमे का फैसला भी 26 वर्ष बाद आया था । इसी तरह कैमरे के सामने रुपये लेते हुए देखे गए बंगारू लक्ष्मण को दोषी साबित करने में न्यायालय को 11 साल लग गए । भारत में लम्बे समय से अदालती कवायद में लटके मुकदमों का जब भी जिक्र आएगा , अयोध्या राम मंदिर मामले का नाम जरूर लिया जाएगा । इस मामले में यूं तो 206 साल पहले विवाद उठ गया था , लेकिन इसके 72 साल बाद पहली बार यह मामला अदालत _ _ में पहुंचा । तब से लेकर 9 नवम्बर , 2019 को इस मामले में फैसला आने के पहले तक लगभग 134 साल तक यह मामला न्यायिक - प्रक्रिया में उलझा रहा । इस तरह अदालती दांव - पेच में न जाने कितने मुकदमे फैसले के इंतजार में अधर में हैं ।
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दाम बांधना-काम देना बड़ी चुनौती
वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत में घरेलू मांग में लगातार आ रही कमी को गंभीर समस्या माना है । आईएमएफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नकारात्मक रुख को देखते हुए ढांचागत सुधार की सलाह दी है । मोदी सरकार में पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यन ने भारत को गहरे आर्थिक सुस्ती के दौर में बताते हुए आगाह किया है । एक शोध पत्र में उन्होंने लिखा है कि यह कोई साधारण सुस्ती नहीं है , भारत में गहन सुस्ती है । ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था आईसीयू में जा रही है । अर्थशास्त्र में इस साल का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी के विचार भी उत्साहजनक नहीं रहे । कुछ दिन पहले भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा कियाथा कि जीडीपी 4.5 नहीं बल्कि 1.5 फीसद पर है । जब इतने सारे जानकार चेतावनी और सलाह दे रहे हों तो इन पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं बनती । नए साल में आर्थिक मोर्चे पर सरकार को बहुत काम करना होगा ।
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रघुवर पर भारी पड़ी आदिवासियों की नाराजगी
रघुवर सरकार का बुरा वक्त वर्ष 2017 से ही तब शुरू हो गया था , जब सरकार जमीन अधिग्रहण बिल लेकर आई थी । विधानसभा से पास होने पर भी सरकार इसे लागू नहीं करा सकी । इसी के बाद से । आदिवासियों में रघुवर सरकार के खिलाफ नाराजगी के बीज पनपने लगे । वर्ष 2014 में भाजपा को जिताने के बाद गैर आदिवासी सीएम बनाने से भी आदिवासी समाज अपने को ठगा महसूस कर रहा था । भाजपा को जिन गैर आदिवासियों ने वोट डाला था , वह भी इस चुनाव में उससे किनारा कर चुका था । इसका कारण यह था कि बीते पांच वर्षों में भाजपा सरकार ने रोजगार के अवसर मुहैया नहीं कराए । भाजपा के बागी उम्मीदवार सरयू राय की उम्मीदवारी ने भी वोट में सेंध लगाई । स्थानीय मुद्दों से अलगाव भी भाजपा की हार का कारण बना ।
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हक के लिए उदासीनता त्यागें उपभोक्ता
हर व्यक्ति उपभोक्ता है । बावजूद इसके , कुछ ही लोग उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं , जिसका लाभ विभिन्न कंपनियां और दुकानदार उठाते हैं ।
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इंटरनेट से कैसे मिले योजनाओं का लाभ ?
करीब पांच साल पहले ग्राम पंचायतों के भवनों में वाई - फाई लगाकर गांव वालों को इंटरनेट से जोड़ने का अभियान शुरू किया गया था , जो आज भी अधूरा है । प्रदेश की 59 हजार से अधिक पंचायतों में हर काम इंटरनेट के माध्यम से करने के लिए आए दिन आदेश जारी किए जाते रहते हैं , लेकिन जिस देश की 33 फीसदी आबादी निरक्षर हो और 70 फीसदी आबादी गांवों में बसती हो , वहां ऐसा करना कैसे संभव हो पाएगा । गांव में जो लोग हाईस्कूल , इंटर , बीए तक पढ़े - लिखे भी हैं , वे भी नहीं जानते कि घर बैठे सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं ।
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सन्मार्ग से विमुख करता है भौतिकता का प्रदर्शन
उत्सवधर्मिता तो जीवन का आवश्यक अंग है , बस इसमें वैभव का अनावश्यक प्रदर्शन न हो । इस व्यर्थ के प्रदर्शन में कदाचार पैठ जमा लेता है और आगे चलकर ढेर सारे दुर्गुणों के साथ जीवन को आदर्शों से भटका देता है । भौतिकता का अतिरेक धर्म और सत्य के मार्ग से विरत करता है । ऐसी भौतिकता देश काल - समाज सबके हितों के प्रतिकूल होती है । इसका कारण है , भौतिकता में सत्य और धर्म न साध्य होते हैं न साधन , जबकि सत्य धरा को धारण करता है और धर्म सबकी रक्षा करता है ।
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दावों और वादों पर जमीनी अमल की चुनौती
प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने देश को एक विश्वास दिलवाया था कि उनका प्रयास देश में मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेस का होगा , लेकिन बेरोजगारों के संकट के समाधान के लिए बनाई गई दर्जन भर योजनाओं के परिणाम खुद ही चिन्ता का कारण बने हुए हैं । इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री ने अपने दावे के मुताबिक ढांचागत सुधार के लिए कई बड़े कदम उठाए , लेकिन जमीनी तौर इस भावना को उतारे जाने का सपना अभी कोसों दूर है ।
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2019 में इन फिल्मी हस्तियों ने दुनिया को कहा अलविदा
बॉलीवुड का सबसे बड़ा धन है इसके कलाकार । यही कारण है कि जब एक कलाकार हमें छोड़कर जाता है तो हर बार कुछ अधूरा कर जाता है । अपनों का छोड़कर जाना किसे नहीं अखरता , हालांकि हम उसकी कला को यादों में सहेज कर रखते हैं । साल 2019 में भी कई बॉलीवुड हस्तियां हमें अचानक छोड़कर चली गईं । उनके निधन से बॉलीवुड स्तब्ध रह गया । ये सभी दिवंगत हस्तियां भारतीय सिनेमा के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ गई हैं । आइए जानते हैं , 2019 में किन बॉलीवुड हस्तियों ने अलविदा कहा -
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एक साल के भीतर गंवा दिए पांच राज्य
मार्च 2018 में जहां देश के 21 राज्यों में भाजपा की सरकार थी , वहीं साल बीतते - बीतते यह तस्वीर तेजी से बदली । 2018 के आखिर में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से बाहर हो गई । दिसंबर 2019 आते - आते यह आंकडा सिमटकर 15 राज्यों तक पहंचता दिख रहा है । पिछले एक साल में ही झारखंड समेत 5 राज्य बीजेपी के हाथ से निकल चुके हैं । नि : संदेह झारखंड चुनाव के नतीजे बीजेपी को बेचैन करने वाले हैं । जनता की नब्ज को समझने का दंभ भरने का दावा करने वाली बीजेपी , अमित शाह और पीएम मोदी के लिए यह चिंता की बात है ।
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