गाजियाबाद के कस्बा लोनी में स्थित विकास नगर में कुछ उत्साही युवकों ने भंडारे का आयोजन किया था. गली नंबर 8 के पास हलवाई के लिए टेंट लगाया जा चुका था. सब्जी, आटा, घी, तेल वगैरह एकत्र हो चुका था. हलवाई के साथ आए कारीगरों ने भट्ठी तैयार कर ली थी.
सब्जी आलू की बनाई जानी थी, आलू काट लिए गए थे. सब सामान तैयार था, कमी मिर्च मसालों की थी. यह सब लाने का जिम्मा अतुल ने उठाया था. वह अभी तक मसाले देने नहीं आया था, जबकि अतुल के दोस्तों का कहना था, 'मसाले तो अतुल ने एक हफ्ता पहले ही खरीद लिए थे. मसालों को उसे सुबह ही पहुंचा देना चाहिए था.' वह नहीं आया, इस के पीछे क्या वजह है कोई नहीं जानता था.
"रामू, तुम अतुल के घर जा कर देखो. कहीं अतुल आज के भंडारे की डेट भूल तो नहीं गया है." गणेश नाम के एक व्यक्ति ने वहां मौजूद एक युवक को संबोधित कर के कहा.
" देखता हूं दादा." रामू सिर हिला कर बोला और गली नंबर 8 में ही स्थित अतुल जैन के घर की तरफ चल पड़ा.
अभी रामू दोचार कदम ही चला था कि सामने से अतुल अपनी स्कूटी से आता हुआ नजर आ गया. रामू के पांव रुक गए. अतुल पास आया, तब रामू को उस की स्कूटी पर मसालों का कट्टा नजर आ गया.
"सब तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं अतुल. मैं तुम्हें बुलाने जा रहा था कि तुम आ गए."
"मैं देर से सोया था, थोड़ी देर पहले ही जागा हूं. अभी नहाया भी नहीं, पहले मसाले पहुंचाने आ गया." अतुल ने कहा और स्कूटी आगे बढ़ा कर टेंट के नजदीक रोक दी.
रामू भी लौट आया. मसाले का कट्टा उतार कर उसी ने हलवाई के पास पहुंचाया, "लो उस्ताद, मसाले भी आ गए."
हलवाई ने कट्टे की रस्सी खोली और टेबल पर कट्टे से मसाले के पैकेट निकाल कर रखने लगा.
अतुल वहां से हट कर गणेश के पास आ गया और बात करने लगा. अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि हलवाई उन के पास आ कर खिन्न होते हुए बोला, "मसाले कहां से उठा कर लाए हो भाई. सारे मसाले नकली हैं. इन से सब्जी में कोई टेस्ट नहीं आएगा.
"यह क्या कह रहे हो उस्ताद ? मसाले नकली कैसे हो गए, मैं ने तो बाजार भाव में ही खरीदे हैं, किसी रेहड़ी या पटरी से नहीं खरीदे हैं." अतुल हैरान परेशान स्वर में बोला.
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