अप्रैल महीने के आखिरी सप्ताह की 25 तारीख थी. गरमी चरम पर थी, जबकि शाम ढलने को हो आई थी. सैयद साबिर अली अपने घर लौटे आए थे. आते ही उन्होंने अपनी बेगम शबाना से पसीना पोंछने के लिए तौलिया मांगा. बेगम जब तौलिया और एक गिलास पानी ले कर आई तब उन्होंने देखा कि बेगम के चेहरे पर चुहचुहा आई पसीने की बूंदें चमक रही हैं. चेहरे पर परेशानी के भाव साफ नजर आ रहे थे और चिंता झलक रही थी.
साबिर अली तपाक से पूछ बैठे, "क्या हुआ शबाना, काफी परेशान दिखाई दे रही हो? बाहर से आया मैं हूं और पसीना तुम्हारे चेहरे पर?"
"बात ही कुछ ऐसी है," शबाना उदासी के साथ बोली.
"सब खैरियत तो है न!" साबिर अली चिंतित आवाज में बोले.
"खाक खैरियत होगी. आप की लाडली सारा अभी तक कालेज से लौट कर नहीं आई है?" शबाना बोली.
"अरे आ जाएगी, इस में इतना परेशान होने की क्या जरूरत है?" साबिर अली सहजता के साथ शांत भाव से बोले.
"...लेकिन उस का मोबाइल बंद आ रहा है. रोज तो छुट्टी होते ही दोपहर बाद वह घर आ जाती थी. इस से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह इतनी देर तक घर से बाहर रही हो?" परेशान लहजे में शबाना बोली.
"अरे आ जाएगी, रास्ते में ट्रैफिक भी तो कम नहीं होता है...और फिर उस के साथ गौरव भी तो होगा. सारा का मोबाइल बंद है तो उस से पता कर लेती." साबिर चेहरा पोंछते हुए तसल्ली के साथ बोले.
"हां, उसी के संग घूम रही होगी कहीं. फिर भी पता नहीं क्यों मेरा दिल घबरा रहा है." शबाना चिंता जताती हुई बोली.
"तुम बिलकुल भी घबराओ नहीं, थोड़ी देर और इंतजार कर लो, सारा आ जाएगी." साबिर बोले और इत्मीनान से पानी पीने लगे. चिंतित शबाना कमरे में चहलकदमी करने लगी. वह बारबार दीवार पर टंगी घड़ी पर नजर दौड़ाने के साथ ही खिड़की से सड़क की तरफ टकटकी लगा कर देखने लगी. शबाना को अपनी बेटी सारा के लौटने का बेसब्री से इंतजार था. कुछ समय में अंधेरा भी घिर आया...
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