7 अजूबों से कम नहीं ये होनहार बच्चे
Manohar Kahaniyan|September 2024
प्रतिभा न तो उम्र की मोहताज होती है और न ही सुखसुविधाओं की कुछ करने का जज्बा और हौसला हो तो दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है. भारत के कम उम्र के कुछ बच्चों ने कुछ ऐसा कमाल अपनी प्रतिभा से कर दिखाया है कि दुनिया दांतों तले अंगुली दबा रही है.
वेणीशंकर पटेल 'ब्रज'
7 अजूबों से कम नहीं ये होनहार बच्चे

नेम और फेम पाने के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती. सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी उम्र में की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. छोटी उम्र में ही बड़ा नाम करने वाले भविष्य के अंबानी तिलक मेहता, पी.टी. ऊषा की तरह दौड़ने वाली एथलीट पूजा बिश्नोई, रंगों और ब्रश से खेलने वाले पेंटर अद्वैत कोलारकर, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर अर्शदीप सिंह, गूगल बौय कौटिल्य पंडित, शतरंज खिलाड़ी रमेश बाबू प्रगनानंद, कत्थक नृत्यांगना वृति गुजराल बच्चों के लिए एक रोल माडल बन कर उभरे हैं, जो अपने फील्ड में आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला को लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

भारत के ये प्रतिभाशाली 7 बच्चे दुनिया के 7 अजूबों से कम नहीं हैं. इन प्रतिभाशाली बच्चों से दूसरे बच्चे भी सबक ले सकते हैं और अपनी रुचि के अनुसार अपनी जीवन की राह को आसान बना सकते हैं. आइए, हम ऐसे ही बच्चों के हुनर के बारे में जानते हैं.

13 साल में स्टार्टअप कंपनी बनाने वाले तिलक मेहता कहते हैं कि सफलता उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर आप ठान लें और उस काम को मेहनत से करें तो सफलता आप के कदम चूमेगी. इस बात को साबित कर दिखाया है तिलक मेहता ने जिस उम्र में लोग स्कूल की पढ़ाई, खेलकूद और मौजमस्ती में व्यस्त रहते हैं, उस उम्र में तिलक ने 100 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर दी है.

13 साल की उम्र में स्टार्टअप कंपनी 'पेपर-एन-पार्सल' शुरू करने वाले तिलक मेहता का जन्म वर्ष 2006 में गुजरात में हुआ था. उन के पिता विशाल मेहता मुंबई में रह कर एक लौजिस्टिक्स आधारित कंपनी से जुड़े हैं और तिलक की मां काजल मेहता एक सफल गृहिणी हैं.

जब तिलक 13 वर्ष के थे, तब एक घटना ने उन को एक व्यवसाय शुरू करने का आइडिया दिया था. बात 2018 की है, जब तिलक 8वीं कक्षा में थे. अपने ऑफिस से थकेहारे लौट कर घर आते पिता की परेशानी ने तिलक मेहता को खुद का बिजनैस करने का आइडिया दिया था.

ऑफिस से लौटने के बाद जब भी वह अपने पिता से बाजार से स्टेशनरी का सामान लाने को कहते तो उन्हें बहुत बुरा लगता था. पापा की थकान देख कर कभीकभी तो वह अपने स्कूल की पढ़ाई के लिए जरूरी स्टेशनरी की डिमांड भी नहीं करते थे.

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