क्या पत्नी को पति की सेक्स इच्छा की |संतुष्टि के लिए हर पल तैयार रहना चाहिए, भले उसका मन हो या ना हो? क्या स्त्री पर दबाव डाल कर सेक्स के लिए राजी करना या जोर-जबर्दस्ती से संबंध बनाना उचित है? आजकल इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है । मैरिटल रेप पर कानून बने या नहीं, इस चर्चा ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। दरअसल आईपीसी की धारा 375, जो पुरुष द्वारा किसी स्त्री की सहमति के बिना जोर-जबर्दस्ती से बलपूर्वक शारीरिक संबंध बनाने को रेप करार देती है, वही धारा पति द्वारा पत्नी से उसकी मरजी के बगैर बलात बनाए गए संबंध को मैरिटल रेप नहीं मानती । यह गलत तो है, मगर अपराध नहीं। अब इस समस्या पर अलग से कानून की मांग की जा रही है। लेकिन इतने संवेदनशील रिश्ते पर कानून लाने की अपनी अड़चनें भी हैं। जैसे कि इस मामले पर एक असहमति यह जतायी गयी है। कि अगर विवाह के भीतर यौन रिश्ते को अपराध का दर्जा दिया गया, तो विवाह संस्था अस्थिर हो सकती है, पत्नियां ऐसे कानूनों का दुरुपयोग कर सकती हैं।
यहां तक कि जज भी इस बात पर एकमत नहीं हैं कि मैरिटल रेप को रेप माना जाए या नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट में ऐसे ही मामले की सुनवाई कर रहे दो जजों की एक बेंच में जहां एक जज ने इसे मैरिटल ने रेप मानने से इनकार कर दिया, वहीं दूसरे जज का मानना था कि इस मामले को आईपीसी की धारा 375 के अधीन ना लाना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 सबके लिए बराबरी के हक की बात कहता है। ऐसे में सिर्फ दांपत्य का लेबल स्त्री को अनिच्छा के उसके हक से वंचित कैसे कर सकता है? इसीलिए यह सवाल है कि क्यों आईपीसी की धारा 375 पति द्वारा जबरन बनाए गए सेक्स संबंध को रेप ना माने ! कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, 'रेप रेप है, चाहे पति ने ही क्यों ना किया हो!'
क्यों बने यह कानून
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