यह कोई गंभीर बीमारी नहीं, लेकिन ऐसी तकलीफ जरूर है, जिसे हर परिवार में कोई ना कोई झेलता है। कॉन्स्टिपेशन यानी कब्ज से परेशान अपने बुजुर्ग पिता की देखभाल करनेवाली वर्किंग वुमन की कहानी पर केंद्रित फिल्म पीकू ने यों ही नहीं 141 करोड़ कमा लिए। जब मामला इतना कॉमन है, तो क्यों ना बॉडी माइंड सोल में इस बार कब्ज पर बात की जाए। पूरी तरह से पेट साफ ना होने की तकलीफ को ले कर हमने सेंट्रल हेल्थ सर्विसेज, दिल्ली के सीनियर फिजिशियन डॉ. अशोक भटनागर से कुछ सवालों के जवाब जानने चाहे। साथ ही आयुर्वेद कब्ज को ले कर क्या समाधान सुझाता है, इस पर भी मुंबई स्थित वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. रवि कोठारी से हमने बात की। आइए, जानें डॉ. अशोक भटनागर क्या कहते हैं—
किस कंडीशन में हम कह सकते हैं कि व्यक्ति कब्ज के कब्जे में है?
जब मरीज यह शिकायत करता है कि उसे हफ्ते में 3 बार से कम मोशन आता है, स्टूल अनियमित हो या हार्ड हो, जोर लगाना पड़े, तो उसे मेडिकल भाषा में कॉन्स्टिपेशन कहा जाता है। हफ्ते में 3 बार से ज्यादा मोशन होने को नॉर्मल ही मानते हैं। कब्ज की समस्या आजकल इतनी कॉमन है कि हमारे ओपीडी में आनेवाले 100 पेशेंट्स में से 20 को यह शिकायत होती है।
किस एज ग्रुप में कब्ज की शिकायत ज्यादा होती है? यह कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है?
तकरीबन हर एज ग्रुप के लोग कब्ज से परेशान हो सकते हैं, लेकिन इसको ले कर घबराने की कोई बात नहीं है। इन दिनों 15 से 40 साल के मरीज भी इसकी शिकायत ले कर आते हैं। उनमें यह मुख्य रूप से फैटी खाना खाने की वजह से होता है। हालांकि कब्ज के 80-85 प्रतिशत मरीजों में कोई बड़ी बीमारी नहीं होती । जैसे-जैसे मरीज की उम्र बढ़ती जाती है, तो डॉक्टर को देखना चाहिए कि कोई दूसरी बीमारी तो इसकी जड़ में नहीं है। बड़ी उम्र में किसी दूसरी बीमारी की वजह से कब्ज होने की आशंका बढ़ जाती है। वहीं हाइपोथाइरॉइड कम काम करे या पैरा थायरॉइड ज्यादा काम करे, डाइबिटीज में पेट की नसों पर असर पड़ा हो, पोटैशियम के कम हो, तो कब्ज हो सकता है, लेकिन ऐसे मामले बहुत कम होते हैं। डॉक्टर ने किसी दूसरी बीमारी के लिए कोई दवा दी हो जैसे डाइयूरेटिक, तो उससे भी स्टूल हार्ड हो जाता है। पेट दर्द की दवा से भी कब्ज हो सकता है।
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