कहने को तो आंख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा में बाहरी वातावरण को ग्रहण करने की क्षमता है, लेकिन हमारे चेहरे पर लगे ये अंग मात्र अंग ही रह जाएं, अगर उनको प्राण ना मिलें। यानी इनका तालमेल हमारे मस्तिष्क के साथ ना हो तो ये चेहरे पर मात्र एक गोलक बन कर रह जाएंगे। जैसे, किसी व्यक्ति की आंखें तो हैं, पर वह देख ना पाए। मतलब आंखों के होने का मतलब यह नहीं है कि उनमें दृष्टि भी है। इसी तरह कान का होना यह नहीं दर्शाता है कि व्यक्ति सुन भी सकता है।
ज्ञानेन्द्रियां यानी इन्द्रियां, जिनमें ज्ञान है और इसका संबंध प्राण के साथ मन से भी है। इनमें प्राण हों और ये मन के साथ जुड़ते हों, तभी इनका कार्य पूरा होता है। उदाहरण के तौर पर आप टीवी देख रहे हैं, लेकिन आपका मन कहीं और है तो सामने चल रहे दृश्यों को देख कर भी आपको पता नहीं चलेगा कि सामने क्या घटना घटी है या कोई व्यक्ति आपके सामने से हो कर निकल जाएगा और आपको पता नहीं चलेगा। इसलिए मन का भी इंद्रियों के साथ जुड़ना जरूरी है। मन व इंद्रियों के बीच सही सामंजस्य बिठाने के लिए कुछ यौगिक क्रियाएं नियमित करने की आवश्यकता है -
कान की शक्ति बढ़ाएं
कानों को स्वस्थ रखने के लिए कर्ण रंध धौति का अभ्यास करना चाहिए। कान का तत्व आकाश है। कर्ण रंध धौति के अभ्यास से कानों के सुनने की शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही आलस्य दूर होता है और विवेक जाग्रत होता है। इस क्रिया को इस तरह करें-
1. तर्जनी उंगली को कान में डाल कर गोल-गोल घुमाएं। (ध्यान रखें कि आपके नाखून कटे हों)
2. उंगलियों से v बना कर कान के दोनों ओर रखें और ऊपर-नीचे मालिश करें।
चेहरे और जीभ के लिए क्रियाएं
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