हमारे समाज में बच्चों की परवरिश कुछ समय पहले तक बड़ी बात या चुनौती नहीं मानी जाती थी। ज्यादातर बड़े-बूढ़े यही कहते थे कि बच्चों को पालना थोड़े ही पड़ता है, वो तो अपने आप पल जाते हैं। दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी में से एक मैसेराटा में हाल ही में हुए एक शोध और अध्ययन में पाया गया कि बच्चों की परवरिश का पुराना ढर्रा अब काम नहीं करता। यानी बच्चों को सुधारने के लिए अब डांट या मार काम नहीं करती, बल्कि हल्का-फुल्का माहौल, हंसी-मजाक और मौज-मस्ती को अपनाकर माता-पिता बच्चों के साथ अपने संबंध को मजबूत बना सकते है। पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी में पीडियाट्रिक्स और ह्यूमेनिटीज के प्रोफेसर डॉक्टर बेंजामिन लेवी कहते हैं, 'मस्ती भरे माहौल में जो बच्चे पलते हैं, वे बड़े होकर एक बेहतर इंसान बनते हैं और अपने माता-पिता के साथ भी उनके रिश्ते बेहतर होते हैं।' जिन बच्चों को बचपन में खूब डांट या मार खानी पड़ती है, बड़े होने के बाद भी उनके भीतर कई तरह की मानसिक जटिलताएं रह जाती हैं।
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लौंग दा लश्कारा
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