• इस चुनाव में एक बड़ा फैक्टर है ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस, इसे लेकर आपका रुख क्या है?
मैं स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं कि यह प्रदेश में एक भावनात्मक मुद्दा है. आज जो कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बनाए हुए है, उसी ने ओपीएस समाप्त किया था. हिमाचल प्रदेश में जब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने ओपीएस समाप्त करके एनपीएस लागू किया. अगर कांग्रेस को लगा कि उसने गलत किया तो 2012 में फिर से वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे, तब एनपीएस समाप्त कर देते. यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है और हमने कभी भी इसके है बारे में मना नहीं किया है. हम आइसोलेशन में निर्णय नहीं ले सकते. देश के 18 राज्यों में भाजपा की सरकार है. इसलिए हमने इस विषय को केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष रखा है और वहां इस पर विचार चल रहा है. हमने मुख्य सचिव के स्तर पर इसके लिए एक समिति बनाई थी. इसमें सारे विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई. ओपीएस को लागू करना सरल नहीं है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने घोषणा तो कर दी लेकिन इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री से लगातार मदद मांग रहे हैं. एनपीएस का पैसा बाजार में निवेश हुआ है. इसे वापस लाने की अपनी जटिलताएं हैं. एनपीएस के लिए राज्य सरकार और केंद्र के बीच एमओयू हुआ है और इससे निकलना एक पक्ष का फैसला नहीं हो सकता. इस समस्या का कोई भी समाधान निकलेगा तो केंद्र के सहयोग से ही निकलेगा.
• एक मुख्यमंत्री के तौर पर आपको लेकर कई धारणाएं हैं. कुछ लोग कहते हैं कि आप बहुत सरल और सहज हैं तो कुछ कहते हैं कि आप केंद्र के सामने अपनी बात मजबूती से नहीं रख पाते और पांच साल दिल्ली से सरकार चली. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि ब्यूरोक्रेसी पर मुख्यमंत्री की पकड़ नहीं है. इसलिए कई बार मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव बदले. इस बारे में आप क्या कहेंगे?
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