पाकिस्तान से एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल सिंधु जल संधि (आइडब्ल्यूटी) के तहत आने वाली पनबिजली परियोजनाओं का मुआयने करने जून के आखिरी हफ्ते में जम्मू और कश्मीर आया. दक्षिण एशिया के दो देशों के बीच साझा जल संसाधन पर मतभेदों को हल करने के लिए पांच साल से ज्यादा अरसे में यह इस तरह की पहली यात्रा थी. प्रतिनिधिमंडल भारत की गुजारिश पर विश्व बैंक की तरफ से बनाई गई तटस्थ विशेषज्ञ समिति का हिस्सा था. उसे कड़ी सुरक्षा के हेलिकॉप्टरों से श्रीनगर और जम्मू के किश्तवाड़ ले जाया गया, जहां विवादित रतले परियोजना है. समिति में भारतीय और पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के साथ अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस और दूसरे देशों के कम से कम 40 सदस्य थे. उनके साथ जम्मू और कश्मीर प्रशासन के 25 जनसंपर्क अधिकारी भी थे.
दोतरफा रिश्तों में ठहराव के बीच हुई इस यात्रा ने आइडब्ल्यूटी के भविष्य और दोनों अनमने देशों के बीच पुल का काम करने की इसकी क्षमता के बारे में चर्चाओं को नए सिरे से हवा दे दी. वाशिंगटन डी.सी. में विल्सन सेंटर के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन प्रतिनिधिमंडल की यात्रा को ' अहम' मानते हैं, जिससे इस बात की झलक मिलती है कि दोनों देश संधि के ढांचे के भीतर सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे कहते हैं, "यह दिखाता है कि हाल के बरसों में व्यापक दोतरफा तनावों में फंस जाने के बाद आइडब्ल्यूटी को अब और जस का तस नहीं लिया जा सकता.
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