वकार अपने सीनियर साथी प्रीतम के साथ मिलकर पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, समस्तीपुर, सीवान और सारण जिले के सभी अमीन और कानूनगो को कैथी का प्रशिक्षण दे चुके हैं. इन दोनों को सभी 38 जिलों के अमीन - कानूनगो को कैथी पढ़ना और समझना सिखाना है. तीन दिन के प्रशिक्षण में उनके साथी प्रीतम इन कर्मचारियों को कैथी वर्णमाला के अक्षरों को पहचानना और शब्द पढ़ना सिखाते हैं और वकार कैथी में लिखे जमीन के दस्तावेजों में वर्णित जमीन के बंटवारे, सौदे और अन्य संबंधित शब्दों के मतलब बताते हैं.
वकार कहते हैं, "तीन दिन में कैथी लिपि को पूरी तरह सिखाना तो मुमकिन नहीं. मगर हम लोग कोशिश कर रहे हैं कि ये लोग जमीन के दस्तावेज पढ़ना और समझना सीख जाएं." मगर इस बहाने दस हजार से ज्यादा अमीनकानूनगो कैथी पढ़ना-समझना सीख जाएंगे. ऐसे उम्मीद है कि विलुप्त होने के कगार पर पहुंची कैथी शायद फिर से जिंदा हो जाए.
कैथी बिहार समेत पूर्वी भारत के कई राज्यों की एक प्रमुख लिपि रही है. इसका प्रयोग सिर्फ जमीन के दस्तावेजों में ही नहीं बल्कि लोकगीतों, स्थानीय संतों की वाणियों, डायरियों, महाजनी दस्तावेजों और अदालती दस्तावेजों में बहुतायत में होता रहा है. जानकार इसे जन लिपि कहते हैं, जहां देवनागरी उच्च कोटि के साहित्य और धर्मग्रंथों की लिपि थी, कैथी में सामान्य जन लेने-देने, कारोबार, स्थानीय संस्कृति और चिट्ठी-पत्री किया करते थे. एक जमाने में प्रारंभिक स्कूली पढ़ाई भी कैथी में हुआ करती थी. मगर अंग्रेजों के जमाने में ब्रिटिश सरकार रोमन लिपि को बढ़ावा दिया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने लिए देवनागरी को चुना. ऐसे में कैथी उपेक्षा का शिकार होती चली गई और 1970 तक आते-आते प्रचलन से बाहर हो गई.
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