कैलेंडर वर्ष 2025 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि इस समय उतनी ही होने का अनुमान है जितनी कैलेंडर वर्ष 2024 में 3.2 फीसद थी. यह देखते हुए कि यह महामारी से पहले के वर्षों की वृद्धि की तुलना में कमजोर है, वैश्विक आय तथा महामारी से पहले की राह के बीच अंतर और बढ़ जाने की संभावना है. हालांकि अनुमानों में त्रुटियां आम बात है, फिर भी 2025 में अनुमानों को लेकर अनिश्चितताएं ज्यादा रहेंगी. उथल-पुथल थोड़ा जल्द शुरू हो सकती है, 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के बाद. दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति को, भले ही उथल-पुथल मचाने का नहीं, मगर कारोबार, कर, नियमन, आव्रजन और ऊर्जा बाजारों के अलावा अन्य चीजों को ठीक करने का जनादेश मिला है.
व्यापार और नियमनों पर उनकी घोषणाएं नीति प्राथमिकताएं तय करने के बजाए बातचीत का शुरुआती बिंदु लगती हैं. आव्रजन के मसले पर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर चल रही इस बहस से भी जाहिर होता है कि सीनेट और कांग्रेस को हलके में नहीं लिया जा सकता. राजकोषीय घाटे का बढ़ना ज्यादा तय है क्योंकि 2025 में खत्म हो रही कर कटौतियों को आगे बढ़ा दिया गया है. चिंतित बॉन्ड बाजार ने अमेरिकी सरकार की उधारी लागत को उछाल दिया है, नतीजतन इसने विश्व में पूंजी की लागत में इजाफा कर दिया है और डॉलर को दूसरे बाजारों से, खासतौर पर उभरती अर्थव्यवस्थाओं से खींच लिया है. इससे मुद्रा बाजारों में उतार-चढ़ाव बढ़ गया है. यह और ज्यादा बढ़ सकता है अगर चीन के नीति निर्माताओं ने अमेरिका जाने वाले अपने आयात पर संभावित शुल्कों के जवाब में डॉलर की तुलना में रेन्मिन्बी का अवमूल्यन किया.
जहां यह उम्मीद करना उचित है कि साल जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, बाहरी स्थितियों में कुछ सुधार हो सकता है, वहीं भारतीय नीति निर्माताओं को आने वाले कुछ समय में वैश्विक वित्तीय और व्यापार बाजारों में ज्यादा उतार-चढ़ाव की संभावना का हिसाब लेकर चलना चाहिए. खासतौर पर, उन्हें विनिमय दर को ज्यादा अस्थिर होने देना चाहिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की असाधारण स्थिरता एक जोखिम बन सकती है.
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