पिछले साल की जिस सबसे महत्वपूर्ण घटना का असर 2025 और उसके बाद भी पड़ने की संभावना है वह है अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप 20 जनवरी को पद संभाल लेंगे. वे ज्यादातर नीतिगत क्षेत्रों में बहुपक्षीय, नियम-आधारित दृष्टिकोण के बजाए द्विपक्षीय, लेन-देन वाला नजरिया अपनाने के लिए जाने जाते हैं. अमेरिकी व्यापार नीति के लिए यह कोई हैरत की बात नहीं कि पिछले सात साल में उसने चुनिंदा ढंग से संरक्षणवाद वाला और टैरिफ के मामले में राजनैतिक हितों से प्रेरित नजरिया अपनाया है. ट्रंप 2.0 के शासनकाल में ये रुझान और ज्यादा तेज हों तो ताज्जुब न होगा, खासकर 'चिंता का विषय माने वाले देश चीन के संबंध में. हालांकि, हाल ही उत्तरी अमेरिकी व्यापार ब्लॉक के सदस्य मेक्सिको और कनाडा जैसे मित्रवत सहयोगियों पर ज्यादा टैरिफ का ऐलान अनिश्चितता की एक अतिरिक्त चिंता पेश करता है और यहां तक कि इससे उन संस्थागत व्यवस्थाओं के टूटने का भी अंदेशा है, जिनका अमेरिका सदस्य है. इनमें राष्ट्रपति ट्रंप के अपने पहले कार्यकाल के दौरान डिजाइन की गईं व्यवस्थाएं भी शामिल हैं. इसके मद्देनजर भारत को ऐसी व्यापार रणनीति की जरूरत होगी जो उस मौके का फायदा उठाने में मदद करे जो अमेरिकाचीन व्यापार और टेक्नोलॉजी प्रतिस्पर्धा में होने वाली वृद्धि के साथ-साथ तेजी से बदलते अनिश्चित वैश्विक व्यापार माहौल से निबट सकती है. यह खासकर इसलिए मौजूं है क्योंकि व्यापार, विशेष रूप से निर्यात में मजबूत वृद्धि, देश के 'विकसित भारत' के अपने विजन को हासिल करने की दिशा में तेजी से विकास को बनाए रखने के लिए जरूरी है.
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